"सगुण ब्रह्म": अवतरणों में अंतर

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परमात्मा का वह रूप जो सत्व, रज और तम तीनों गुणों से युक्त है, '''सगुण ब्रह्म''' या '''साकार ब्रह्म''' कहलाता है।
जब [[ब्रह्म]], कर्ता का भाव ग्रहण करता है जैसे सृष्‍टि‍कर्ता, पालनकर्ता, संहारकर्ता आदि‍ या जब ब्रह्म के साथ कोई [[वि‍शेषण]] लगता है जैसे सर्वव्‍यापक, सर्वज्ञ, सर्वशक्‍ति‍मान् आदि‍ तब वह '''सगुण ब्रह्म''' या '''[[ईश्‍वर]]''' कहलाता है। सगुण ब्रह्म भी नि‍राकार ही रहता है। सगुण ब्रह्म या ईश्‍वर की ही उपासना की जा सकती है।
 
जब [[ब्रह्म]], कर्ता का भाव ग्रहण करता है जैसे सृष्‍टि‍कर्ता, पालनकर्ता, संहारकर्ता आदि‍ या जब ब्रह्म के साथ कोई [[वि‍शेषण]] लगता है जैसे सर्वव्‍यापक, सर्वज्ञ, सर्वशक्‍ति‍मान् आदि‍ तब वह '''सगुण ब्रह्म''' या '''[[ईश्‍वर]]''' कहलाता है। सगुण ब्रह्म भी नि‍राकार ही रहता है। सगुण ब्रह्म या ईश्‍वर की ही उपासना की जा सकती है।
 
मध्यकाल से उत्तरीय भारत में [[भक्तिमार्ग]] के दो भिन्न संप्रदाय हो गए थे। एक ईश्वर के निर्गुण, निराकर रूप का ध्यान करता हुआ [[मोक्ष]] की प्राप्ति की आशा रखता था और दूसरा ईश्वर का सगुण रूप [[राम]], [[कृष्ण]] आदि अवतारों में मानकर उनकी पूजा कर मोक्ष की इच्छा रखता था। पहले मत के कबीर, नानक आदि मुख्य प्रचारक थे और दूसरे के तुलसी, सूर आदि।
 
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]