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पहले गायक या वादक अपने गायन या वादन का प्रदर्शन राजाओं या रईसों के सम्मुख करता था अथवा किसी धार्मिक उत्सव के समय मंदिरों में करता था। कभी-कभी वह मेले इत्यादि में भी जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करता था। किंतु उसके पास ऐसा कोई साधन नहीं था जिसके द्वारा वह संगीत के एक पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम को जनता के सामने प्रस्तुत कर सके।
[[File:Live Music Concert.jpg|thumb|संगीत गोष्ठी का उदाहरण।]]
 
यूरोप में [[इंग्लैंड]], [[फ्रांस]], [[जर्मनी]], [[इटली]], इत्यादि देशों में '''संगीतगोष्ठी''' का आयोजन प्रारंभ हुआ। इसे "'''कंसर्ट'''" (concert) कहते हैं। संगीत सभाएँ या संगीत विद्यालय अथवा कुछ व्यवसायी लोगों ने संगीतगोष्ठी का आयोजन प्रारंभ किया। किसी अच्छे कलाकार या कलाकारों के गायन वादन का कार्यक्रम किसी बड़े भवन में संपन्न होता था। इस संगीतगोष्ठी में जनता का प्रवेश टिकट या चंदे के द्वारा होने लगा। इस प्रकार की संगीतगोष्ठियाँ अमरीका और अन्य देशों में प्रारंभ हुई। बड़े बड़े नगरों में इस प्रकार की गोष्ठियों के लिए विशाल गोष्ठीभवन (concert hall) या सभाभवन (Auditorium) बन गए। भारत में इस प्रकार की संगीतगोष्ठी का आयोजन बंबई, पूना, कलकत्ता इत्यादि बड़े नगरों में प्रारंभ हो गया है। इन संगीतगोष्ठियों के अतिरिक्त भारत में कई स्थानों में संगीतोत्सव या संगीतपरिषदों का आयोजन भी होता है जिनमें बहुत से कलाकार एकत्र होते है और उनका कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। इनमें श्रोताओं का प्रवेश टिकट द्वारा होता है।