"कला": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 1:
[[चित्र:Raja Ravi Varma, The Milkmaid (1904).jpg|right|thumb|200px|[[राजा रवि वर्मा]] द्वारा चित्रित 'गोपिका']]
'''कला''' (आर्ट) शब्द इतना व्यापक है कि विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ केवल एक विशेष पक्ष को छूकर रह जाती हैं। कला का अर्थ अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है, यद्यपि इसकी हजारों परिभाषाएँ की गईगयी हैं। भारतीय परंपरापरम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है।
 
कला एक प्रकार का कृत्रिम निर्माण है जिसमे शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग होता है।
पंक्ति 11:
कला शब्द का प्रयोग शायद सबसे पहले [[भरतमुनि|भरत]] के "[[नाट्यशास्त्र]]" में ही मिलता है। पीछे [[वात्स्यायन]] और [[उशनस्]] ने क्रमश: अपने ग्रंथ "[[कामसूत्र]]" और "[[शुक्रनीति]]" में इसका वर्णन किया।
 
"[[कामसूत्र]]", "[[शुक्रनीति]]", जैन ग्रंथ "प्रबंधकोश", "कलाविलास", "[[ललितविस्तर]]" इत्यादि सभी भारतीय ग्रंथों में कला का वर्णन प्राप्त होता है। अधिकतर ग्रंथों में कलाओं की संख्या 64 मानी गईगयी है। "प्रबंधकोश" इत्यादि में 72 कलाओं की सूची मिलती है। "[[ललितविस्तर]]" में 86 कलाओं के नाम गिनाएगिनाये गएगये हैं। प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित [[क्षेमेंद्र]] ने अपने ग्रंथ "[[कलाविलास]]" में सबसे अधिक संख्या में कलाओं का वर्णन किया है। उसमें 64 जनोपयोगी, 32 धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, सम्बंधीसम्बन्धी, 32 मात्सर्य-शील-प्रभावमान संबंधीसम्बन्धी, 64 स्वच्छकारिता संबंधीसम्बन्धी, 64 वेश्याओं संबंधीसम्बन्धी, 10 भेषज, 16 कायस्थ तथा 100 सार कलाओं की चर्चा है। सबसे अधिक प्रामाणिक सूची "कामसूत्र" की है।
 
[[यूरोपीय साहित्य]] में भी कला शब्द का प्रयोग शारीरिक या मानसिक कौशल के लिए ही अधिकतर हुआ है। वहाँ [[प्रकृति]] से कला का कार्य भिन्न माना गया है। कला का अर्थ है रचना करना अर्थात् वह [[कृत्रिम]] है। प्राकृतिक सृष्टि और कला दोनों भिन्न वस्तुएँ हैं। कला उस कार्य में है जो मनुष्य करता है। कला और [[विज्ञान]] में भी अंतर माना जाता है। [[विज्ञान]] में ज्ञान का प्राधान्य है, कला में कौशल का। कौशलपूर्ण मानवीय कार्य को कला की संज्ञा दी जाती है। कौशलविहीन या भोंड़े ढंग से किएकिये गएगये कार्यो को कला में स्थान नहीं दिया जाता।
 
==वर्गीकरण==
कलाओं के वर्गीकरण में मतैक्य होना सम्भव नहीं है। वर्तमान समय में कला को [[मानविकी]] के अन्तर्गत रखा जाता है जिसमें [[इतिहास]], [[साहित्य]], [[दर्शन]] और [[भाषाविज्ञान]] आदि भी आते हैं।
 
पाश्चात्य जगत में कला के दो भेद किये गये हैं- उपयोगी कलायेंकलाएँ (Practice arts) तथा [[ललित कला]]एँ (Fine arts) । परम्परागत रूप से निम्नलिखित सात को 'कला' कहा जाता है-
*[[स्थापत्य कला]] (architecture)
*[[मूर्तिकलामूर्त्तिकला]] (sculpture)
*[[चित्रकला]] (painting)
*[[संगीत]] (music)
पंक्ति 34:
* '''[[पाक कला]]''' (culinary arts) - बेकिंग, चॉकलेटरिंग, मदिरा बना
* '''मिडिया कला''' - फोटोग्राफी, सिनेमेटोग्राफी, विज्ञापन
* '''[[दृष्य कला]]एँ''' - ड्राइंग, [[चित्रकला]], [[मूर्तिकलामूर्त्तिकला]]
 
कुछ कलाओं में दृश्य और निष्पादन दोनों के तत्त्व मिश्रित होते हैं, जैसे फिल्म।
 
== कला का महत्वमहत्त्व ==
जीवन, उर्जाऊर्जा का [[महासागर]] है। जब अंतश्‍चेतना जागृत होती है तो उर्जाऊर्जा जीवन को कला के रुप में उभारती है। कला जीवन को '''सत्‍यम् शिवम् सुन्‍दरम्''' से समन्वित करती है। इसके द्वारा ही बुद्धि आत्‍मा का सत्‍य स्‍वरुप झलकता है। कला उस क्षितिज की भाँति है जिसका कोई छोर नहीं। इतनी विशाल इतनी विस्‍तृत। अनेक विधाओं को अपने में समेटे। तभी तो कवि मन कह उठा-
 
: '''साहित्‍य संगीत कला वि‍हीनः साक्षात् पशुः पुच्‍छ विषाणहीनः ॥'''
पंक्ति 45:
[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]] के मुख से निकला “कला में मनुष्‍य अपने भावों की अभिव्‍यक्ति करता है ” तो [[प्लेटो]] ने कहा - “कला सत्‍य की अनुकृति के अनुकृति है।”
 
[[लेव तालस्तोय|टालस्‍टाय]] के शब्‍दों में अपने भावों की क्रिया, रेखा रंग ध्‍वनि या शब्‍द द्वारा इस प्रकार अभिव्‍यक्ति करना कि उसे देखने या सुनने में भी वही भाव उत्‍पन्‍न हो जाए कला है। हृदय की गइराईयों से निकली अनुभूति जब कला का रुप लेती है कलाकार का अन्‍तर्मन मानो मूर्त ले उठता है चाहे लेखनी उसका माध्‍यम हो या रंगों से भी तूलिका या सुरों की पुकार या बाधोंवाद्यों की झंकार। कला ही आत्मिक शान्ति का माध्‍यम है। यह ‍कठिन तपस्‍या है।है, साधना है। इसी के माध्‍यम से कलाकार सुनहरी और इन्‍द्रधनुष आत्‍मा से स्‍वप्निल विचारों को साकार रुप देनादेता है।
 
कला में ऐसी शक्ति होनी चाहिए कि वह लोगों को संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठाकर उसे ऐसे उंचे स्‍थान पर पहुंचा दे जहां मनुष्‍य केवल मनुष्‍य रह जाता है। कला व्‍यक्ति के मन में बनी स्‍वार्थ, परिवार, क्षेत्र, धर्म, भाषा और जाति आदि की सीमाएं मिटाकर विस्‍तृत और व्‍यापकता प्रदान करती है। व्‍यक्ति के मन को उदात्‍त बनाती है। वह व्‍यक्ति को “स्‍व” से निकालकर “वसुधैव कुटुम्‍बकम” से जोड़ती है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कला" से प्राप्त