"व्यपगत का सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

छो अनुनाद सिंह ने विलय का सिद्धान्त पृष्ठ व्यपगत का सिद्धान्त पर स्थानांतरित किया: मानक नाम
No edit summary
पंक्ति 1:
{{ब्रिटिश भारत में रियासतें}}
 
'''विलयव्यपगत का सिद्धान्त''' या '''हड़प नीति''' ([[अँग्रेजी]]: The Doctrine of Lapse, 1848-1856) [[भारतीय]] [[इतिहास]] में [[हिन्दू]] [[भारतीय]] राज्यों के उत्तराधिकार संबंधी प्रश्नों से निपटने के लिए [[ब्रिटिश भारत]] के [[गवर्नर जनरल]] [[लॉर्ड डलहौजी]] द्वारा 1848 में तैयार किया गया नुस्खा है।था। यह परमसत्ता के सिद्धान्त का उपसिद्धांत था, जिसके द्वारा [[ग्रेट ब्रिटेन]] ने [[भारतीय उपमहाद्वीप]] के शासक के रूप में अधीनस्थ [[भारतीय]] राज्यों के संचालन तथा उनकी उत्तराधिकार के व्यवस्थापन का दावा किया।<ref name="keay">John Keay,''India: A History''. Grove Press Books, distributed by Publishers Group West. United States: 2000 ISBN 0-8021-3797-0, p. 433.</ref>
 
यह विस्तारवादी नीति थी। कंपनी के गवर्नर जनरलों ने भारतीय राज्यों को अंगरेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए। उदाहरण के लिये, किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रितानी साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय नरेशों में बहुत असंतोष पैदा हुआ था। 1857 में हुए ब्रितानी शासन के खिलाफ भारतीय प्रतिरोध को जन्म देने में इस नीति की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
 
== मापदण्ड ==
[[हिन्दू]] [[कानून]] के अनुसार, कोई व्यक्ति या शासक, जिसका स्वाभाविक उत्तराधिकारी नहीं है, किसी व्यक्ति को गोद ले सकता है, जिसे उसके बाद पुत्र के सभी व्यक्तिगत और राजनीतिक अधिकार मिल जाएँगे।<ref>{{cite book | editor= S.N.Sen | title= History of Modern India | year= 2006 | origmonth= | edition= | series= | date= | month= | publisher= New Age International (P) Ltd | location= | isbn= 8122417744, |isbn= 978-8122-41774-6 | oclc= | doi= | id= | pages= 50 | chapter= |chapterurl=| quote= }}</ref>[[लॉर्ड डलहौजी]] ने ऐसे दत्तक ग्रहण को मंजूरी देने एवं आश्रित राज्यों के मामले में दत्तक की अनुपस्थिति में अपने विवेकानुसार कार्यवाई करने के परम अधिकारों पर ज़ोर दिया। व्यावहारिक तौर पर इसका मतलब अंतिम क्षण के दत्तक ग्रहण को अस्वीकृत करना तथा स्वाभाविक या दत्तक उत्तराधिकारी न होने पर राज्यों का विलय था, क्योंकि [[लॉर्ड डलहौजी]] का मानना था कि पूर्वी के बजाय पश्चिमी शासन बेहतर है और जहां संभव हो इन्हें लागू करना चाहिए।<ref>{{cite book | editor= इंदू जैन | title= भारत ज्ञानकोश | year= | origmonth= | edition= प्रथम| series= पाँच| date= | month= | publisher= पोप्युलर प्रकाशन | location= मुंबई| isbn= 81-715-4993-4| oclc= | doi= | id= | pages= 211 | chapter= |chapterurl=| quote= }}</ref>
Line 46 ⟶ 50:
== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
== बाहरी &nbsp;कड़ियाँ==
{{Commons category|Indian Princely States|ब्रिटिश भारत की रियासतें}}
*[http://upsssc.com/औपनिवेशिक-अर्थव्यवस्था/ औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था]
* [http://flagspot.net/flags/in-princ.html भारतीय रियासतों के झंडे]
*[http://sumirhindimain.blogspot.in/2005/10/blog-post_30.html विलय की नीति के मुख्य कर्त्ताधर्ता]
 
 
[[श्रेणी:आधुनिक भारत का इतिहास]]
[[श्रेणी:भारत में अंग्रेज शासन]]
 
[[श्रेणी: भारत का इतिहास]]
[[श्रेणी:देशानुसार इतिहास]]