"व्यंजना": अवतरणों में अंतर
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==प्रकार==
व्यंजना के दो भेद हैं- शाब्दी व्यंजना और आर्थी व्यंजना ।
===शाब्दी व्यञ्जना===
शाब्दी व्यंजना के दो भेद होते हैं- एक अभिधामूला और दूसरी लक्षणामूला।
====अभिधामूला शाब्दी व्यंजना====
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:मुखर मनोहर श्याम रंग बरसत मुद अनुरूप ।
:झूमत मतवारो झमकि बनमाली रसरूप ॥
यहाँ 'वनमाली' शब्द मेघ और श्रीकृष्ण दोनों का बोधक है। इसमें एक अर्थ के साथ दूसरे अर्थ का भी बोध हो जाता है। ध्यान दें कि यहाँ श्लेष नहीं। क्योंकि रूढ़ वाच्यार्थ ही इसमें प्रधान है। अन्य अर्थ का आभास-मात्र है। श्लेष में शब्द के दोनों अर्थ अभीष्ट होते है- समान रूप से उस पर कवि का ध्यान रहता है।
पंक्ति 39:
:वंजुल मंजु लतान की चारू चुभीली जहाँ सुखमा सरसार्इ।। -- सत्यनारायण कविरत्न
यहाँ [[रामचन्द्र]]जी के अपने वनवास के समय की सुख-स्मृतियाँ व्यंजित होती हैं जो देश-विशेषता से ही प्रकट है। इन पृथक-पृथक विशेषताओं से वर्णन के अनुसार भी व्यंग्य सूचित होता है।
==इन्हें भी देखें==
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