"जातक कथाएँ": अवतरणों में अंतर

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सन्धिभेद जातक - गीदड़ ने चुगली कर सिंह और बैल को परस्पर लड़वा दिया आदि आदि।
 
==कथावस्तु एवं शैली==
जातक कथाओं का रूप लोक-साहित्य का है। उसमें पशु-पक्षियों आदि की कथाएँ भी है और मनुष्यों की भी है। जातकों के कथानक विविध प्रकार के हैं। [[विण्टरनित्ज]] ने मुख्यतः सात भागों मेंं उनका वर्गीकरण किया है-
 
*1. व्यावहारिक नीति-सम्बन्धी कथाएँ
*2. पशुओं की कथाएँ
*3. हास्य और विनोद से पूर्ण कथाएँ
*4. रोमाञ्चकारी लम्बी कथाएँ या उपन्यास
*5. नैतिक वर्णन
*6. कथन मात्र, और
*7. धार्मिक कथाएँ
 
वर्णन की शैलियाँ भी भिन्न-भिन्न है। विण्टरनित्ज ने इनका वर्गीकरण पाँच भागों में इस प्रकार किया है।
 
*1. गद्यात्मक वर्णन
*2. आख्यान, जिसके दो रूप हैं-
:* (अ) संवादात्मक, और
:* (आ) वर्णन और संवादों का सम्मिश्रित रूप।
:3. अपेक्षाकृत लम्बे विवरण-जिनका आदि गद्य से होता है, किन्तु बाद में जिनमें गाथाएँ भी पाई जाती है।
:4. किसी विषय पर कथित वचनों का संग्रह
:5. [[महाकाव्य]] या [[खण्डकाव्य]] के रूप में वर्णन।
 
वानरिन्द जातक(57) विलारवत जातक(128) , सीहचम्म जातक(189), सुंसुमार जातक(208), और सन्धिभेद जातक(349) आदि। जातक कथाएँ पशु-कथाएँ है। ये कथाएँ अत्यधिक महत्वपूर्ण है। विशेषतः इन्हीं कथाओं का गमन विदेशों में हुआ है। व्यंग्य का पुट भी यहाँ अपने काव्यात्मक रूप से दृष्टिगोचर होता है। प्रायः पशुओं की तुलना में मनुष्यों को हीन दिखाया गया है। एक विशेष बात यह है कि व्यंग्य किसी व्यक्ति पर न कर सम्पूर्ण जाति पर किया गया है।
 
एक बन्दर कुछ दिनों के लिए मनुष्यों के बीच आकर रहा। बाद में अपने साथियों के पास जाता है। साथी पूछते है-‘‘मनुष्यों के समाज में रहे है। उनका बर्ताव जानते हैं। हमें भी कहें। हम उसे सुनना चाहते हैं।‘‘ मनुष्यों की करनी मुझसे मत पूछो। कहे, हम सुनना चाहते हैं। बन्दर ने कहना शुरू किया,‘‘ हिरण्य मेरा! सोना मेरा! यही रात दिन वे चिल्लाते है। घर में दो लोग रहते हैं। एक को मूँछ नहीं होती। उसके लम्बे केश होते है, वेणी होती है और कानों में छेद होते हैं। उसे बहुत धन से खरीदा जाता है। वह सब जनों को कष्ट देता है।‘‘ बन्दर कह ही रहा था कि उसके साथियों ने कान बन्द कर लिए‘‘ मत कहें मत कहें‘‘। इस प्रकार के मधुर और अनूठे व्यंग्य के अनेकों चित्र जातक में मिलेगें। विशेषतः मनुष्य के अहंकार के मिथ्यापन के सम्बन्ध में मर्मस्पर्शी व्यंग्य। महापिंगल जातक(240) में, ब्राह्मणों की लोभवृत्ति के सम्बन्ध में सिगाल जातक(113) में एक अति बुद्धिमान तपस्वी के सम्बन्ध में, अवारिय जातक (376)में है। सब्बदाठ नामक श्रृंगाल सम्बन्धी हास्य और विनोद भी बड़ा मधुर है (सब्बदाठ जातक 241) और इसी प्रकार मक्खी हटाने के प्रयत्न में दासी का मूसल से अपनी माता को मार देना (रोहिणी जातक 45) और बन्दरों का पौधों का उखाड़ कर पानी देना भी मधुर विनोद से भरे हुए हैं।
 
इसी प्रकार रोमांच के रूप में महाउम्मग्ग जातक (546) आदि नाटकीय आख्यान के रूप में छदन्त जातक (514) आदि, एक ही विषय पर कहे हुए कथनों के संकलन के रूप में कुणाल जातक (536) आदि, संक्षिप्त नाटक के रूप में उम्मदन्ती जातक (527) आदि, नीतिपरक कथाओं के रूप में गुण जातक (157) आदि, पूरे महाकाव्य के रूप में पेस्सन्तर जातक (547) आदि एवं ऐतिहासिक संवादों के रूप में संकिच्च जातक (530) और महानारदकस्सप जातक (544) आदि। अनेक प्रकार के वर्णनात्मक आख्यान जातक में भरे पड़े हैं, जिनकी साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख यहाँ अत्यन्त संक्षिप्त रूप में भी नहीं किया जा सकता।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==