"वेदाङ्ग ज्योतिष": अवतरणों में अंतर
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[[लगध]] का '''वेदाङ्ग ज्योतिष''' एक प्राचीन [[ज्योतिष]] ग्रन्थ है। इसका काल १३५० ई पू माना जाता है। अतः यस संसार का ही सर्वप्राचीन ज्याेतिष ग्रन्थ माना जा सकता है ।
वेदाङ्गज्योतिष कालविज्ञापक
: '''वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्ताः कालानुपूर्वा विहिताश्च यज्ञाः।'''
: '''तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो
चारो वेदों के पृथक् पृथक् ज्योतिषशास्त्र थे। उनमें से सामवेद का ज्यौतिषशास्त्र अप्राप्य है, शेष तीन वेदों के ज्यौतिषात्र प्राप्त होते हैं।
* (१) [[ऋग्वेद]] का ज्यौतिष शास्त्र -
* (२) [[यजुर्वेद]] का ज्यौतिष शास्त्र –
* (३) [[अथर्ववेद]] ज्यौतिष शास्त्र -
: सिद्धान्तसंहिताहोरारुपं स्कन्धत्रयात्मकम् ।
: वेदस्य निर्मलं चक्षुर्ज्योतिश्शास्त्रमनुत्तमम् ॥
वेदाङ्गज्याेतिष सिद्धान्त ज्याेतिष है, जिसमें सूर्य तथा चन्द्र की गति का गणित है । वेदाङ्गज्योतिष में [[गणित]] के महत्व का प्रतिपादन इन शब्दों में किया गया है-
: यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
:
: ''( जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, उसी प्रकार सभी
==इन्हें भी देखें==
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