"रासायनिक गतिकी": अवतरणों में अंतर

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अनुगामी क्रियाओं की माला को, जिसमें क्रियाओं की बार बार आवृत्ति होती हो, श्रृंखलाबद्ध क्रिया कहा जाता है। इस प्रकार की श्रृंखलाबद्ध क्रियाएँ कभी कभी बहुत लंबी होती हैं। अत: ऋणात्मक उत्प्रेरक पदार्थो, अथवा अवरोधक पदार्थो के प्रति श्रृंखलाबद्ध क्रियाएँ अत्यंत सुग्राही होती हैं, क्योंकि किसी एक अणु पर हजारों अणुओं से निर्मित संपूर्ण शृंखला की कड़ी निर्भर करती है। श्रृंखलाबद्ध क्रियाओं का सरलतम उदाहरण प्रकाश के संयोग में हाइड्रोजन तथा क्लोरीन गैस की संश्लेषण क्रिया है, जिसके फलस्वरूप हाइड्रोजन क्लोराइड का उत्पादन होता है। इस क्रिया में निम्नांकित क्रियाओं की माला के द्वारा क्रिया संपन्न होती है :
 
Cl2Cl<sub>2</sub> + प्रकाश-अवशोषण --> 2cl2Cl
 
Cl + H2H<sub>2</sub> --> HCl + H
 
H + Cl2Cl<sub>2</sub> --> HCl + Cl
 
Cl + H2H<sub>2</sub> --> HCl + H
 
क्रिया में प्रकाश के अवशोषण से जैसे ही पारमाणिवक क्लोरीन का निर्माण होता है, यह हाइड्रोजेन के साथ क्रिया करके पारमाणिवक हाइड्रोजन का उत्पादन करता है, जो पुन: क्लोरीन के साथ क्रिया करके पारमाणिवक क्लोरीन को मुक्त करता है और इस प्रकार क्रिया का यह क्रमबद्ध विकास होता रहता है, जिससे हाइड्रोजन क्लोराइड की मात्रा में क्रमश: वृद्धि होती जाती है।
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सामन्यत: अधिकांश विषमांग क्रियाएँ उत्प्रेरकों के प्रयोग द्वारा उत्प्रेरित क्रियाओं के क्षेत्र में पाई जाती हैं। इस सामान्य धारण में भी अनेक अपवाद पाए जाते हैं। अनेक विषमांग क्रियाओं की क्रियाप्रणाली में विभिन्न प्रावस्था के क्रियाशील पदार्थ उपस्थित होते हैं। एथिलीन्‌ ऑक्साइड (गैस) तथा जल (द्रव) की पारस्परिक क्रिया से एथिलीन ग्लाइकोल बनता है। यह क्रिया निम्नांकित रूप में प्रदर्शित की जाती है :
 
C<sub>2</sub>H<sub>4</sub>O + H<sub>2</sub>O --> C<sub>2</sub> H<sub>4</sub> (OH)<sub>2</sub>
C2H4O + H2O --> C2 H4 (OH)2
 
उपर्युक्त क्रिया विषमाँग क्रिया है। विभिन्न प्रावस्थावाली विषमांग क्रियाओं में क्रिया-गति-विज्ञान का संयंत्र समांग क्रियाओं की भाँति केवल रासायनिक कारकों पर ही निर्भर करता है, वरना भौतिकीय तथा रासायनिक दोनों ही कारकों पर निर्भर करता है। इस प्रकार विषामांग क्रियाओं में विसरण (diffusion) अत्यंत महत्वपूर्ण कारक होता है। विषमांग क्रियाओं का गति-विज्ञान-विश्लेषण अत्यंत जटिल होता है। क्योंकि सभी प्रावस्था की क्रियाओं का एक साथ विश्लेषण करना होता है, अत: औद्योगिक दृष्टि से प्राय: सभी क्रियाओं के विश्लेषण में अनुभवजन्य रीतियों का ही प्रयोग किया जाता है।