"नून मीम राशिद": अवतरणों में अंतर

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राशिद ने कुछ वक्‍त तक ताजवर नजीबाबादी की उर्दू पत्रिका ‘शाहकार’ का संपादन किया। एक वक्‍त वे मुल्‍तान के कमिश्‍नर ऑफिस में भी कारकुन रहे। यहीं उन्‍होंने अपनी पहली मुक्‍त छंद की कविता ‘जुर्रते परवाज़’ लिखी। 1939 में वे [[ऑल इंडिया रेडियो]] के समाचार संपादक बन गए और आगे चलकर प्रोग्राम डाइरेक्‍टर हुए। कुछ समय के लिए उन्‍होंने सेना में भी काम किया। 1940 में उनका पहला काव्‍य संग्रह ‘मावरा’ प्रकाशित हुआ। विभाजन के बाद वे पाकिस्‍तान रेडियो के रीजनल डाइरेक्‍टर हुए। उसके बाद उन्‍हें [[संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ]] में काम करने का अवसर मिला और वे न्‍यूयॉर्क चले गए। उन्‍होंने [[संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ]] के लिए कई देशों में नौकरी की और 1973 में [[इंग्‍लैंड]] में सेवानिवृत हुए और वहीं रह गए।
==उर्दू शायरी में योगदान==
{{Quote box |quoted=true |bgcolor=#F8E0F7|salign=right| quote = ... जब सारे नौजवान अंग्रेजी सीखने की धुन में लगे हुए थे, उन दिनों राशिद पर चित्रकला का नशा छाया हुआ था। लेखन के शुरुआती दौर में वे उस दौर के मशहूर पाश्‍चात्‍य कवियों में जॉन कीट्स, मैथ्‍यू आर्नोल्‍ड और रॉबर्ट ब्राउनिंग से खासे प्रभावित थे। आरंभ में राशिद ने उनकी तर्ज पर लिखने की कोशिशें भी कीं। लेकिन जल्‍द ही उन्‍हें समझ में आ गया कि पश्चिम की राह पर चलने के बजाय अपनी राह बनानी चाहिए और वो अपने सफर पर अकेले चल निकले। इसीलिए उनकी शायरी में जदीदियत और उर्दू की मिठास का अद्भुत संगम है, जो पाठक को ताज़गी भी देता है और नई तरह से सोचने का सलीका भी।| source = '''जि़या मुहिउद्दीन''' <br> पाकिस्तानी आलोचक}}</ref>|align=left|width=200px}}
 
वे [[उर्दू]] साहित्य के पहले कवि थे जिन्‍होंने उस रचनात्‍मकता को मुख्‍य स्‍वर दिया जो किसी भी सर्जनात्‍मक कला का मुख्‍य ध्‍येय होता है। अर्थात [[उर्दू]] [[शायरी]] को छंद और बहर के पारंपरिक बंधनों से आज़ाद करने का बड़ा काम किया। इस लिहाज से देखा जाए तो नून मीम राशिद और [[फ़ैज़ अहमद फ़ैज़]] अपने युग के दो ऐसे उर्दू शायर हुये हैं जिन्‍होंने उूर्द शायरी को पुरानी सोच से आज़ाद किया।
 
राशिद की पहली पुस्तक ‘मावरा’ 1940 में प्रकाशित हुई। जिस उर्दू शायरी को इश्‍क़, महबूब, कासिद, विसाल, रकीब, ख़ुदा, सनम वगैरह के बिना मानीखेज नहीं माना जाता था, वहां इन लफ्जों के बिना उन्होने नई और आधुनिक शायरी को संभव किया। यही वजह है कि वे अपने पहले संग्रह के प्रकाशन से पहले ही खासे लोकप्रिय हो गए थे। <ref>{{cite web | url=http://www.the-south-asian.com/Jan2002/Pakistani-Literature2-Poetry.htm | title=Pakistani Literature – Evolution & trends |trans_ title= पाकिस्तानी साहित्य - विकास एवं रुझान | author=गिलानी कामरान| work=दि साउथ एशियन डॉट कॉम|date=जनवरी 2002 | accessdate=18 जुलाई 2016|language=अँग्रेजी }}</ref>
 
==ग्रंथ सूची==
* ''मावरा''