"क्रेन": अवतरणों में अंतर

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भाप से चलनेवाले एक क्रेन चित्र 6. में दिखाया गया है। इसमें (6) क्रेन का वाष्पित्र है, जो घूमनेवाले आधार पर है। (4) इंजन से चलने वाला वह ढोल है जिसपर क्रेन की जंजीर लिपटी रहती है। इसी के साथ साथ धरणी (5) को उठाने और गिराने के लिये जंजीर (2) को खींचा या छोड़ा जाता है। इस प्रकार भार उठाने के समय काँटे के साथ साथ क्रेन की धरणी को उठाने का भी प्रबंध किया जाता है। इससे भार यथेष्ठ ऊपर उठाया जा सकता है। भार को उठाने के पश्चात्‌ क्रेन के आधार को घुमाकर भार को आवश्यक स्थान पर छोड़ देते हैं। इन क्रेनों के संतुलन का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के क्रेनों के उलटने से दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं। भाप से चलनेवाले क्रेनों में तो वाष्पित्र ही तोलन का काम देता है, परंतु दूसरे क्रेनों में पृष्ठ की ओर भारी भारी पत्थर बाँध देते हैं। जैसे ही भार उठाया जाता है पीछे के भार उसका संतुलन करते है और जैसे जैसे यह ऊपर उठता है वैसे वैसे क्रेन के केंद्र से इसकी दूरी कम होती चली जाती हैं। इस समय क्रेन के संतुलन के पीछे की ओर उतने की भार आवश्यकता नहीं रहती जितने की भार को उठाने के समय थी। इसलिये यदि जंजीर टूट जाय, या पीछे इतना भार रख दिया गया हो कि क्रेन अपना संतुलन न रख सकें, तो क्रेन उलट जाएगा।
 
चित्र 7. में [[उपरि क्रेन]] दिखाई गयी है। घिरनियों और मशीनों को क्षैतिज धरणियों पर रखा जाता है और यह धरणी कार्य के स्थान पर स्थित रहती है। यदि इस क्रेन को कारखाने की लंबाई में भी काम में लाना पड़े तो इसको चलानेवाली क्रेन बनाते हैं। इसके लिये कारखाने की लंबाईवाली दोनों दीवारों पर धरणियाँ लगाते हैं और क्रेनवाली धरणियों के नीचे चक्र लागाकर दीवारवाली धरणियों पर रख दिया जाता है। इस प्रकार यह क्रेन कारखाने की लंबाई और चौड़ाई दोनों ओर काम कर सकता हैं।
 
आरोधों (brakes) के उपयोग के बिना क्रेनों से काम लेना कठिन होता है। भार उठाते समय संघर्ष तथा गुरुतत्व के विरुद्ध काम किया जाता है। जब भार को नीचे लाया जाता हैं तो सावधानी से लाना होता है। इसी काम के लिये क्रेनों में आरोध लगाए जाते हैं, जिनसे चलती हुई क्रेन को रोका जा सकता हैं। आंभस पर काम करनेवाली क्रेनों में तो यह काम इसके कपाट से ही ले लिया जाता है और फिर आंभस आरोध अधिक समर्थ भी होते हैं। क्रेन की मशीनों के ढोलों पर संघर्षपट्टियाँ चढ़ाई जाती हैं। आवश्यकता पड़ने पर इन्हें ढोल के ऊपर जकड़ दिया जाता है और क्रेन रुक जाता हैं। इन आरोधों को क्रेन के चलाने के स्थान से ही लगाया जा सकता है। बिजली की क्रेनों में इसकी मोटर की तारों को इस प्रकार लगाया जाता है कि जब भार नीचे उतारा जा रहा हो तो मोटर डाइनमो बन जाय, जिससे बिजली पैदा होने लगती है और आरोध का काम देती है। भाप से चलनेवाली क्रेनों में सब काम दो सिलिंडर के इंजन से होता है।
 
आजकल विभिन्न प्रकार के क्रेनों का उपयोग हो रहा है। नया आकल्पन बिजली की नई मशीनों के कारण है, परंतु हर क्रेन के काम करने का सिद्धांत वही है जो ऊपर बताया गया है। बिजली की मोटर से अधिक और आवश्यक शक्ति मिलती है और इसका जिस प्रकार भी चाहें चला सकते हैं। काम करने में समय भी कम लगता है और लागत भी कम आती है।
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
==इन्हें भी देखें==
*[[ऊपरी करेन]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/क्रेन" से प्राप्त