"भारतीय गणित": अवतरणों में अंतर

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: ''तिथि मे का दशाम्य स्ताम् पर्वमांश समन्विताम्।''
: ''विभज्य भज समुहेन तिथि नक्षत्रमादिशेत॥''
:: ''अर्थात् तिथि को 11 से गुणा कर उसमें पर्व के अंश जोड़ें और फिर नक्षत्र संख्या से भाग दें। इस प्रकार तिथि के नक्षत्र बतावें।''नेपालमें इसी ग्रन्थके आधारमे विगत ६ सालसे "वैदिक तिथिपत्रम्" व्यवहारमे लाया गया है |
 
हमारे ऋषि, महर्षियों को बड़ी संख्याओं में अपार रुचि थी। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में [[गौतम बुद्ध]] की जीवनी पर आधारित ‘[[ललितविस्तर सूत्र|ललितविस्तर]]’ की रचना हुई। उसमें गौतम बुद्ध के गणित कौशल की परीक्षा का प्रसंग आता है। उनसे '''कोटि''' (10<sup>7</sup> ) से ऊपर संख्याओं के अलग-अलग नाम के बारे में पूछा गया। युवा सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध का बचपन का नाम) ने कोटि के बाद 10<sup>53</sup> की संख्याओं का अलग-अलग नाम दिया और फिर 10<sup>53</sup> को आधार मान कर 10<sup>421</sup> तक की संख्याओं को उनके नामों से संबोधित किया। गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। उन्हीं के समकक्ष [[महावीर स्वामी]] का भी पदार्पण हुआ जिन्होंने [[जैन धर्म]] की स्थापना की। जैन महापुरुषों की गणित में भी रुचि थी। उनकी प्रसिद्ध रचनाएं- ‘[[सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र]]’, ‘वैशाली गणित’, ‘[[स्थानांग सूत्र]]’, ‘[[अनुयोगद्वार सूत्र]]’ एवं ‘[[शतखण्डागम]]’ है। [[भद्रवाहु]] एवं [[उमास्वति]] प्रसिद्ध जैन गणितज्ञ थे।