"वेद": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: मोबाइल एप सम्पादन |
No edit summary टैग: मोबाइल एप सम्पादन |
||
पंक्ति 3:
'वेद' [[शब्द]] संस्कृत [[भाषा]]के'विद् ज्ञाने'[[धातु]]से करणार्थमे घञ् प्रत्यय लगनेसे ज्ञानार्थक वेद शब्द बना है,इस तरह वेदका शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ'हैं, इसी धातु से'विदित' (जाना हुआ),'विद्या'(ज्ञान),'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं।
वैदिकौं का यह सर्वस्वग्रन्थ वेदत्रयी के नाम से भी सर्वविदित है। पहला यह वेद ग्रन्थ एक ही था जिसका नाम यजुर्वेद था- ''एकैवासीद् यजुर्वेद चतुर्धाः व्यभजत् पुनः'' वही यजुर्वेद पुनः ऋक् यजुस् सामःके रूपमे प्रसिद्ध हुआ जीससे वह त्रयी कहलाया | वैदिक परम्परा दो प्रकारके है। ब्रह्म परम्परा और आदित्य परम्परा। दोनो परम्पराके वेदत्रयी परम्परा प्राचीन कालमे प्रसिद्ध था। पिछे जाकर वेदके समकक्षमे अथर्व भी सलग्न हो गया | फीर त्रयीके जगह चतुवेद कहलाने लगे | गुरुके रुष्ट होने पर जीन्होने सभी वेदौंको आदित्यसे प्राप्त कीया है उन याज्ञवल्क्यने अपनी स्मृतिमे वेदत्रयीके बाद और पुराणौंके आगे अथर्वको सम्मिलित कर बोला [[वेदाsथर्वपुराणानि इति ]]
आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -
|