"भूतसंख्या पद्धति": अवतरणों में अंतर

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*(1) निम्नलिखित श्लोक में [[संगमग्राम के माधव|माधव]] ने [[वृत्त]] की [[परिधि]] और उसके [[व्यास]] का सम्बन्ध (अर्थात [[पाई]] का मान) बताया है जो इस श्लोक में [[भूतसंख्या]] के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है-
: ''विबुधनेत्रगजाहिहुताशनत्रिगुणवेदाभवारणबाहवः
: ''नवनिखर्वमितेवृतिविस्तरे परिधिमानमिदं जगदुर्बुधः
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वेदा भ (नक्षत्र) वारण (गज) बाहवै (भुजाएँ)
 
*(2) निम्नलिखिद पद्य में [[सूरदास]] ने भूतसंख्याओं का उपयोग कर अत्यन्त सुन्दर प्रभाव का सृजन किया है-
 
: ''कहत कत परदेसी की बात ।
: ''मंदिर अरध अवधि बदि हमसौं , हरि अहार चलि जात ।
: ''ससि-रिपु बरष , सूर-रिपु जुग बर , हर-रिपु कीन्हौ घात ।
: ''मघ पंचक लै गयौ साँवरौ , तातैं अति अकुलात ।
: ''नखत , वेद , ग्रह , जोरि , अर्ध करि , सोई बनत अब खात ।
: ''सूरदास बस भई बिरह के , कर मींजैं पछितात ॥
 
:: '''संकेत''' : मंदिर अरध = पक्ष (१५ दिन) , हरि अहार = मास (३० दिन), नखत = नक्षत्र = २७, वेद = ४, ग्रह = ९ आदि
 
== इन्हें भी देखें ==