"कर्नाटक": अवतरणों में अंतर

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== धर्म ==
वैदिक कालसे ही वेदके [[मन्त्र]] ,[[ब्राह्मणग्रन्थ]], [[श्रौतसूत्र]], [[गृह्यसूत्र ]], [[मन्वादि स्मृतिग्रन्थ]] आदिकाव्य [[वाल्मीकिरामायण]] ,[[महाभरत]], [[अष्टादशपुराण]] आदि से धार्मिक विचार प्रवाहित रहा है |स्कन्दपुराणके अनुसार पञ्चद्रविडमे से यह क्षेत्र एक है | विन्ध्याचलसे दक्षिणमे रहनेलाले पञ्चद्राविड समुदायके एक हिस्सा कार्णाटक ब्राह्मणसमुहका मूल क्षेत्र यही है | जैनधर्मसे सम्बद्ध एक प्रसिद्ध तीर्थ यहाँ है |
[[चित्र:Gomateswara.jpg|thumb|[[श्रवणबेलगोला]] में गोमतेश्वर (९८२-९८३) की एकाश्म-प्रतिमा, आज जैन धर्मावलंबियों के सर्वप्रिय तीर्थों में से एक है। ]]
[[आदि शंकराचार्य]] ने [[शृंगेरी]] को भारत पर्यन्त चार पीठों में से दक्षिण पीठ हेतु चुना था। [[विशिष्ट अद्वैत]] के अग्रणी व्याख्याता [[रामानुजाचार्य]] ने [[मेलकोट]] में कई वर्ष व्यतीत किये थे। वे कर्नाटक में [[१०९८]] में आये थे और यहां [[११२२]] तक वास किया। इन्होंने अपना प्रथम वास तोंडानूर में किया और फिर मेलकोट पहुंचे, जहां इन्होंने चेल्लुवनारायण मंदिर और एक सुव्यवस्थित मठ की स्थापना की। इन्हें [[होयसाल वंश]] के राजा विष्णुवर्धन का संरक्षण मिला था।<ref name="Kamath">कामत (२००१) पृ.१५०-१५२</ref> [[१२वीं शताब्दी]] में जातिवाद और अन्य सामाजिक कुप्रथाओं के विरोध स्वरूप उत्तरी कर्नाटक में [[वीरशैवधर्म]] का उदय हुआ। इन आन्दोलन में अग्रणी व्यक्तित्वों में [[बसव]], [[अक्का महादेवी]] और अलाम प्रभु थे, जिन्होंने अनुभव मंडप की स्थापना की जहां शक्ति विशिष्टाद्वैत का उदय हुआ। यही आगे चलकर [[लिंगायत]] मत का आधार बना जिसके आज कई लाख अनुयायी हैं।<ref name="basa">कामत (२००१), पृ. १५३-१५४</ref> कर्नाटक के सांस्कृतिक और धार्मिक ढांचे में [[जैन साहित्य]] और [[जैन दर्शन|दर्शन]] का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।