"विषाणु": अवतरणों में अंतर
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{{आज का आलेख}}
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| name = विषाणु
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| image_caption = विषाणु
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}}
'''विषाणु''' अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित [[कोशिका]] में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं।<ref>{{cite book |last=यादव, नारायण |first=रामनन्दन, विजय |title= अभिनव जीवन विज्ञान |year=मार्च २००३ |publisher=निर्मल प्रकाशन |location=कोलकाता |id= |page=१-४० |accessday= १४|accessmonth= अगस्त|accessyear= २००९}}</ref> ये [[नाभिकीय अम्ल]] और [[प्रोटीन]] से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप मे इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल [[आरएनए]] एवं [[डीएनए]] की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है।
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