"हिन्दू काल गणना": अवतरणों में अंतर

टैग: मोबाइल एप सम्पादन
टैग: मोबाइल एप सम्पादन
पंक्ति 94:
 
=== चाँद्र मापन ===
* एक ''[[तिथि]]'' वह समय होता है, जिसमें [[सूर्य]] और [[चंद्र]] के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है। तिथिसिद्धान्तका खण्डतिथि और अखण्डतिथि के हिसाब से दो भेद है |वेदांगज्योतिषके अनुसार अखण्डमानाअखण्डतिथि माना जाता है |जिस दिन चान्द्रकला क्षीण हो जाता है उस दिनको अमावास्या माना जाता है | दुसरे दिन सूर्योदय होते ही शुक्लप्रतिपदा,दुसरे दिन सूर्योदय होते ही द्वितीया |इसी क्रमसे १५दिनमे पूर्णिमा होती है |फिर दुसरे दिन सूर्योदय होते ही कृष्णप्रतिपदा| और फिर दुसरे दिन सूर्योदय होते ही द्वितीया,और इसी क्रमसे तृतीया चतुर्थी आदि होते है |१४ वें दिनमे ही चन्द्रकला क्षीण हो तो उसी दिन कृष्णचतुरदशी टुटा हुआ मानकर दर्शश्राद्धादि कृत्य कीया जाता है | ऐसा न होकर १५ वें दिनमे ही चन्द्रकला क्षीण हो तो तिथियाँ टुटे विना ही पक्ष समाप्त होता है | इस कारण कभी २९ दिनका और कभी ३० दिनका चान्द्रमास माना जाता है | वेदांगज्योतिष भिन्न सूर्यसिद्धान्तादि लौकिक ज्योतिषका आधार में खण्डतिथि मानाजाता है | उनके मतमे तिथियाँ दिन में किसी भी समय आरम्भ हो सकती हैं और इनकी अवधि उन्नीस दिन से अधिक छब्बीस घंटे तक हो सकती है.
* एक ''पक्ष'' या पखवाड़ा = पंद्रह तिथियाँ
* चान्द्रमास दो प्रकारका होता है -एक अमान्त और पूर्णिमान्त | पहला पक्ष शुक्लपक्षप्रतिपदा से अमावास्या तक अर्थात् शुक्लादिकृष्णान्त मास वेदांग ज्योतिष मानता है | इसके अलावा सूर्यसिद्धान्तादि लौकिक ज्योतिषके पक्षधर दुसरा पक्ष मानते है |पूर्णिमान्त पक्ष अर्थात् कृष्णप्रतिपदासे आरम्भ कर पूर्णिमातक एक मास |
पंक्ति 101:
* एक ''अयन'' = 3 '''ॠतुएं'''
* एक ''[[वर्ष]]'' = 2 '''अयन'''का होता है | [http://vedabase.net/sb/3/11/11/en1]
वेदांग ज्योतिषके आधरमे पञ्चवर्षात्मक युग माना जाता है | हर ६०वर्षमे १२ युग व्यतित होजाता है | १२ युगौंके नाम आगे बताया जा चुका है |
शुक्लयजुर्वेदसंहिता के मन्त्रौं २७|४५,३०|१५ में ,२२|२८,२७|४५ ,२२|३१ मे पञ्चसंवत्सरात्मक युगका वर्णन है | ब्रह्माण्डपुराण१|२४|१३९-१४३ , लिंगपुराण १|६१|५०-५४, वायुपुराण१|५३|१११-११५
म.भारत.आश्वमेधिक पर्व४४|२,४४|१८
कौटलीय अर्थशास्त्र २|२०