"युगधर्म": अवतरणों में अंतर

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निम्नलिखित दो श्लोकों के द्वारा यह बताया गया है कि किस प्रकार युगों के ह्रास का क्रम से धर्मों का ह्रास भी देखा जाता है।
: ''अन्ये कृतयुगे धर्मास्त्रेतायां द्वापरेऽपरे।
: ''अन्ये कलियुगे न¤णांनृणां युगह्रासानुरूपतः ॥ ([[मनुस्मृति]])
 
अर्थात् युग के ह्रास के अनुरूप चारों युगों के धर्मों का ह्रास होने लगा। [[कृतयुग]] या [[सतयुग]] के धर्म अन्य है, [[त्रेतायुग]] में अन्य, [[द्वापर]] में कुछ अन्य तथा [[कलियुग]] में कुछ अन्य धर्म उपाय के रूप