"पदार्थ (भारतीय दर्शन)": अवतरणों में अंतर

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वैशेषिक सूत्र के प्रशस्तपादभाष्य के टीकाकार [[श्रीधराचार्य]] नें '[[न्यायकन्दली]]' टीका के उद्देश्य प्रकरण में इन पदार्थों की परिभाषाऍं अधोलिखित प्रकार से की हैं-
 
:(1) '''द्रव्य''' (मूलभूत भौतिक राशि)<sup>[6]</sup> द्रव्य वह है जिनमें गुण निहित होते हैं।
 
:(2) '''गुण''' (Property)<sup>[7]</sup> गुण वह है जो गुण नहीं रखता और जो संयोग और विभाग का स्वतन्त्र कारक नहीं है।
 
:(3) '''कर्म''' (Motion)<sup>[8]</sup> कर्म वह है जो मूलभूत भौतिक राशियों पर आश्रित होता है, परन्तु गुण से विहीन, संयोग और विभाग हेतु स्वतन्त्र है।
 
:(4) '''सामान्य''' (Set)<sup>[9]</sup> सामान्य एकाकार प्रतीति का कारण है।
 
:(5) '''विशेष''' (Partlessness or Specific)<sup>[10]</sup> विशेष चरम विभिन्नता के बोध का कारण है।
 
:(6) '''समवाय''' (Concomitance)<sup>[11]</sup> समवाय का अर्थ है, आधार और आधेय के मध्य की असंयोगिक विद्यमानता।
 
वैशेषिक दर्शन में उपर्युक्त पदार्थों की उपश्रेणियों का निर्देश किया गया है-