"चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर
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चंद्रगुप्त द्वितीय की तिथि का निर्धारण उनके अभिलेखों आदि के आधार पर किया जाता है। चंद्रगुप्त का, गुप्तसंवत् 61 (380 ई.) में उत्कीर्ण मथुरा स्तंभलेख, उनके राज्य के पाँचवें वर्ष में लिखाया गया था। फलत: उनका राज्यारोहण गुप्तसंवत् 61-5= 56= 375 ई. में हुआ। चंद्रगुप्त द्वितीय की अंतिम ज्ञात तिथि उनकी रजतमुद्राओं पर प्राप्त हाती है- गुप्तसंवत् 90+ 0= 409- 410 ई.। इससे अनुमान कर सकते हैं कि चंद्रगुप्त संभवत: उपरिलिखित वर्ष तक शासन कर रहे थे। इसके विपरीत कुमारगुप्त प्रथम की प्रथम ज्ञात तिथि गुप्तसंवत् 96= 415 ई., उनके बिलसँड़ अभिलेख से प्राप्त होती है। इस आधर पर, ऐसा अनुमान किया जाता है कि, चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल का समापन 413-14 ई. में हुआ होगा।
चंद्रगुप्त द्वितीय के विभिन्न लेखों से ज्ञात देवगुप्त एवं देवराज-अन्य नाम प्रतीत होते हैं। अभिलेखों एवं मुद्रालेखों से उनकी विभिन्न उपाधियों- महाराजाधिराज, परमभागवत,
उनका सर्वप्रथम सैनिक अभियान सौराष्ट्र के शक क्षत्रपों के विरुद्ध हुआ। संघर्ष प्रक्रिया एवं अन्य संबद्ध विषयों का विस्तृत ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। चंद्रगुप्त के सांधिविग्रहिक वीरसेन शाब के उदयगिरि (भिलसा के समीप) गुहालेख से, उनका समस्त पृथ्वी जतीने के उद्देश्य से वहाँ तक आना स्पष्ट है। इसी स्थान से प्राप्त चंद्रगुप्त के सामंत शासक सनकानीक महाराज के गुप्तसंवत् 82 (= 401-2 ई.) के लेख तथा आम्रकार्दव नाम के सैन्याधिकारी के साँची गुप्तसंवत् 93 (= 412-13 ई.) के शिलालेख से मालव प्रदेश में उनकी दीर्घ-उपस्थिति प्रत्यक्ष होती है। संभवत: चंद्रगुप्त द्वितीय ने शक रुद्रसिंह तृतीय के विरुद्ध युद्धसंचालन तथा विजयोपरांत सौराष्ट्र के शासन को यहीं से व्यवस्थित किया हो। चंद्रगुप्त की शकविजय का अनुमान उनकी रजतमुद्राओं से भी होता है। सौराष्ट्र की शकमुद्रा परंपरा के अनुकरण में प्रचलित इन मुद्राओं से भी होता है। सौराष्ट्र की शकमुद्रा परंपरा के अनुकरण में प्रचलित इन मुद्राओं पर चंद्रगुप्त द्वितीय का चित्र, नाम, विरुद एवं मुद्राप्रचलन की तिथि लिखित है। शक मुद्राओं से ज्ञात अंतिम तिथि 388 ई. प्रतीत होती है। इसके विपरीत इन सिक्कों से ज्ञात चंद्रगुप्त की प्रथम तिथि गुप्तसंवत् 90+ 0 है। फलत: अनुमान किया जा सकता है कि चंद्रगुप्त की सैराष्ट्रविजय प्राय: 20 वर्षों के सुदीर्घ युद्ध के पश्चात् 409 ई. के बाद ही कभी पूर्णरूपेण सफल हुई होगी।
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