"मत्स्य पुराण": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 5:
 
इस पुराण में सात कल्पों का कथन है, नृसिंह वर्णन से शुरु होकर यह चौदह हजार श्लोकों का पुराण है। मनु और मत्स्य के संवाद से शुरु होकर ब्रह्माण्ड का वर्णन ब्रह्मा देवता और असुरों का पैदा होना, मरुद्गणों का प्रादुर्भाव इसके बाद राजा पृथु के राज्य का वर्णन वैवस्त मनु की उत्पत्ति व्रत और उपवासों के साथ मार्तण्डशयन व्रत द्वीप और लोकों का वर्णन देव मन्दिर निर्माण प्रासाद निर्माण आदि का वर्णन है। इस पुराण के अनुसार मत्स्य (मछ्ली) के अवतार में भगवान [[विष्णु]] ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नांव की रक्षा की थी। इसके पश्चात [[ब्रह्मा]] ने पुनः जीवन का निर्माण किया। एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया।
 
* कृष्णाष्टमी, गौरितृतीया, अक्षयतृतीया,[[सरस्वती]], भीमद्वादशी आदि व्रत
* [[प्रयाग]], [[नर्मदा]], [[कैलास]] वर्णन
* [[राजधर्म]]
* शकुनशास्त्र
* [[शिल्पशास्त्र]]
* [[प्रतिमानिर्माण]]
* [[प्रतिष्ठापन विधि]]
* [[पुरुषार्थ]]
* गृहनिर्माण
* प्रकृति वर्णन
* [[ययाति]] चरित्र
* [[देवयानी]] कथानक
* [[सावित्री]]-उपाख्यान
* [[नरसिंहावतार]] वतारस्य]] का महत्व
* [[चन्द्रवंश]], [[सूर्यवंश]], [[यदुवंश]], [[कुरुवंशान]] विवरण
* [[युग]], [[कल्प]] आदि का विवरण
 
== सन्दर्भ ==