"उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 24:
 
== इतिहास ==
[[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के पश्चात् विश्व रंगमंच पर अवतरित हुई दो महाशक्तियों [[सोवियत संघ]] और [[अमेरिका]] के बीच [[शीत युद्ध]] का प्रखर विकास हुआ। [[फुल्टन भाषण]] व [[टू्रमैन सिद्धांत]] के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने की बात कही गई तो प्रत्युत्तर में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर 1948 में [[बर्लिन]] की नाकेबंदी कर दी। इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाय जाए जिसकी संयुक्त सेनाएँ अपने सदस्य देशों की रक्षा कर सके।
=== उद्देश्य ===
 
पूरी दुनिया में अमेरकी प्रभुत्त्व को स्तापित करना।
मार्च 1948 में [[ब्रिटेन]], [[फ्रांस]], [[बेल्जियम]], [[नीदरलैण्ड]] तथा [[लक्सेमबर्ग]] ने [[बूसेल्स]] की संधि पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता व सामाजिक-आर्थिक सहयोग था। साथ ही संधिकर्ताओं ने यह वचन दिया कि यूरोप में उनमें से किसी पर आक्रमण हुआ तो शेष सभी चारों देश हर संभव सहायता देगे।
=== शुरुआत ===
 
१७ मार्च १९४८ को [[बेल्जियम]], [[नीदरलैण्ड]], [[लग्ज़म्बर्ग]], [[फ्रांस]] और [[संयुक्त राजशाही|यूनाइटेड किंगडम]] द्वारा की गई ब्रुसेल्स की संधि को नाटो समझौते की पहली कड़ी माना जाता है। इस संधि और सोवियत बर्लिन अवरोध ने सितंबर १९४८ में पश्चिमी यूरोपीय संघ सुरक्षा संगठन के गठन का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन [[सोवियत संघ]] की सैनिक शक्ति का मुकाबला करने को संयुक्त राज्य अमेरिका की भागीदारी आवश्यक मानी गई और इसके तत्काल बाद ही नए सैन्य गठबंधन की चर्चा शुरू हो गई।
इसी पृष्ठ भूमि में बर्लिन की घेराबंदी और बढ़ते सोवियत प्रभाव को ध्यान में रखकर अमेरिका ने स्थिति को स्वयं अपने हाथों में लिया और सैनिक गुटबंदी दिशा में पहला अति शक्तिशाली कदम उठाते हुए उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन अर्थात नाटो की स्थापना की। [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के चार्टर के अनुच्छेद 15 में क्षेत्रीय संगठनों के प्रावधानों के अधीन उत्तर अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर किए गए। उसकी स्थापना 4 अप्रैल, 1949 को [[वांशिगटन]] में हुई थी जिस पर 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। ये देश थे- फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका। शीत युद्ध की समाप्ति से पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन भी सदस्य बने और शीत युद्ध के बाद भी नाटों की सदस्य संख्या का विस्तार होता रहा। 1999 में मिसौरी सम्मेलन में पोलैण्ड, हंगरी, और चेक गणराज्य के शामिल होने से सदस्य संख्या 19 हो गई। मार्च 2004 में 7 नए राष्ट्रों को इसका सदस्य बनाया गया फलस्वरूप सदस्य संख्या बढ़कर 26 हो गई। इस संगठन का मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में हैं।
 
== स्थापना के कारण ==
*(१) [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेनाएँ हटाने से इंकार कर दिया और वहाँ साम्यवादी शासन की स्थापना का प्रयास किया। अमेरिका ने इसका लाभ उठाकर साम्यवाद विरोधी नारा दिया। और यूरोपीय देशों को साम्यवादी खतरे से सावधान किया। फलतः यूरोपीय देश एक ऐसे संगठन के निर्माण हेतु तैयार हो गए जो उनकी सुरक्षा करे।
 
*(२) द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पश्चिम यूरोपीय देशों ने अत्यधिक नुकसान उठाया था। अतः उनके आर्थिक पुननिर्माण के लिए अमेरिका एक बहुत बड़ी आशा थी ऐसे में अमेरिका द्वारा नाटों की स्थापना का उन्होंने समर्थन किया।
 
=== उद्देश्य ===
*1. यूरोप पर आक्रमण के समय अवरोधक की भूमिका निभाना।
 
*2. सोवियत संघ के पश्चिम यूरोप में तथाकथित विस्तार को रोकना तथा युद्ध की स्थिति में लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना।
 
*3. सैन्य तथा आर्थिक विकास के लिए अपने कार्यक्रमों द्वारा यूरोपीय राष्ट्रों के लिए सुरक्षा छत्र प्रदान करना।
 
*4. पश्चिम यूरोप के देशों को एक सूत्र में संगठित करना।
 
*5. इस प्रकार नाटों का उद्देश्य "स्वतंत्र विश्व" की रक्षा के लिए साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए और यदि संभव हो तो साम्यवाद को पराजित करने के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता माना गया।
 
== संरचना ==
नाटों का मुख्यालय [[ब्रसेल्स]] में हैं। इसकी संरचना 4 अंगों से मिलकर बनी है-
 
1. '''परिषद''' : यह नाटों का सर्वोच्च अंग है। इसका निर्माण राज्य के मंत्रियों से होता है। इसकी मंत्रिस्तरीय बैठक वर्ष में एक बार होती है। परिषद् का मुख्य उत्तरायित्व समझौते की धाराओं को लागू करना है।
 
2. '''उप परिषद्''' : यह परिषद् नाटों के सदस्य देशों द्वारा नियुक्त कूटनीतिक प्रतिनिधियों की परिषद् है। ये नाटो के संगठन से सम्बद्ध सामान्य हितों वाले विषयों पर विचार करते हैं।
 
3. '''प्रतिरक्षा समिति''' : इसमें नाटों के सदस्य देशों के प्रतिरक्षा मंत्री शामिल होते हैं। इसका मुख्य कार्य प्रतिरक्षा, रणनीति तथा नाटों और गैर नाटों देशों में सैन्य संबंधी विषयों पर विचार विमर्श करना है।
 
4. '''सैनिक समिति''' : इसका मुख्य कार्य नाटों परिषद् एवं उसकी प्रतिरक्षा समिति को सलाह देना है। इसमें सदस्य देशों के सेनाध्यक्ष शामिल होते हैं।
 
==नाटो की भूमिका एवं स्वरूप==
1. नाटों के स्वरूप व उसकी भूमिका को उसके संधि प्रावधानों के आलोक में समझा जा सकता है। संधि के आरंभ में ही कहा गया हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र कि सदस्य देशों की स्वतंत्रता, ऐतिहासिक विरासत, वहाँ के लोगों की सभ्यता, लोकतांत्रिक मूल्यों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन की रक्षा की जिम्मेदारी लेगे। एक दूसरे के साथ सहयोग करना इन राष्ट्रों का कर्तव्य होगा इस तरीके से यह संधि एक सहयोगात्मक संधि का स्वरूप लिए हुए थी।
 
2. संधि प्रावधानों के अनुच्छेद 5 में कहा गया कि संधि के किसी एक देश या एक से अधिक देशों पर आक्रमण की स्थिति में इसे सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों पर आक्रमण माना जाएगा और संधिकर्ता सभी राष्ट्र एकजुट होकर सैनिक कार्यवाही के माध्यम से एकजुट होकर इस स्थिति का मुकाबला करेगे। इस दृष्टि से उस संधि का स्वरूप सदस्य देशों को सुरक्षा छतरी प्रदान करने वाला है।
 
3. सोवियत संघ ने नाटो को साम्राज्यवादी और आक्रामक देशों के सैनिक संगठन की संज्ञा दी और उसे साम्यवाद विरोधी स्वरूप वाला घोषित किया।
 
== प्रभाव ==
1. पश्चिमी यूरोप की सुरक्षा के तहत् बनाए गए नाटों संगठन ने पश्चिमी यूरोप के एकीकरण को बल प्रदान किया। इसने अपने सदस्यों के मध्य अत्यधिक सहयोग की स्थापना की।
 
2. इतिहास में पहली बार पश्चिमी यूरोप की शक्तियों ने अपनी कुछ सेनाओं को स्थायी रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय सैन्य संगठन की अधीनता में रखना स्वीकार किया।
 
3. द्वितीय महायुद्ध से जीर्ण-शीर्ण यूरोपीय देशों को सैन्य सुरक्षा का आश्वासन देकर अमेरिका ने इसे दोनों देशों को ऐसा सुरक्षा क्षेत्र प्रदान किया जिसके नीचे वे निर्भय होकर अपने आर्थिक व सैन्य विकास कार्यक्रम पूरा कर सके।
 
4. नाटो के गठन से अमेरिकी पृथकक्करण की नीति की समाप्ति हुई और अब वह यूरोपीय मुद्दों से तटस्थ नहीं रह सकता था।
 
5. नाटो के गठन ने शीतयुद्ध को बढ़ावा दिया। सोवियत संघ ने इसे साम्यवाद के विरोध में देखा और प्रत्युत्तर में वारसा पैक्ट नामक सैन्य संगठन कर पूर्वी यूरोपीय देशों में अपना प्रभाव जमाने की कोशिश की।
 
6. नाटो ने अमेरिकी विदेश नीति को भी प्रभावित किया। उसकी वैदशिक नीति के खिलाफ किसी भी तरह के वाद-प्रतिवाद को सुनने के लिए तैयार नहीं रही और नाटो के माध्यम से अमेरिका का यूरोप में अत्यधिक हस्तक्षेप बढ़ा।
 
7. यूरोप में अमेरिका के अत्यधिक हस्तक्षेप ने यूरोपीय देशों को यह सोचने के लिए बाध्य किया कि यूरोप की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान यूरोपीय दृष्टिकोण से हल किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण ने “यूरोपीय समुदाय” के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
 
==विस्तार : शीतयुद्ध के बाद नाटो==
नाटो की स्थापना के बाद विश्व में और विशेषकर यूरोप में अमेरिका तथा तत्कालीन सोवियत संघ इन दो महाशक्तियों के बीच युद्ध खतरनाक मोड़ लेने लगा और नाटो का प्रतिकर करने के लिए पोलैण्ड की राजधानी वारस में पूर्वी यूरोप के समाजवादी देशों के साथ मिलकर सोवियत संघ ने वारसा पैक्ट की स्थापना की।
 
1990-91 में सोवियत संघ के विखंडन के साथ ही शीतयुद्ध की भी समाप्ति हुई। वारसा पैक्ट भी समाप्त हो गया। किंतु अमेरिका ने नाटों को भंग नहीं किया बल्कि अमेरिकी नेतृत्व में नाटों का और विस्तार ही हुआ। इसी बिन्दु पर यह सवाल उठता है कि शीतयुद्ध कालीन दौर में निर्मित इस संगठन का शीत युद्ध के अंत के बाद मौजूद रहने का क्या औचित्य है।
 
शीत युद्धोत्तर काल में अमेरिका द्वारा नाटों की भूमिका पुनर्परिभाषित की गई। इसके तहत कहा गया कि सम्पूर्ण यूरोप के क्षेत्रों में यह पारस्परिक सहयोग और संबंधों के विकास का माध्यम है। इतना ही नहीं प्रजातांत्रिक मूल्यों व आदर्शों के विकास एवं प्रसार में भी नाटों की भूमिका को वैध बनाने का प्रयास किया।
 
अमेरिका ने नाटो की भूमिका को शीत युद्ध कालीन गुटीय राजनीति से बाहर निकालकर वैश्विक स्वरूप प्रदान किया। नाटो को अब शांति स्थापना के अंतर्गत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के उन्मूलन में भी इसकी भूमिका को रेखांकित किया जा रहा है। निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत शीतयुद्धोत्तर कालीन नाटों की भूमिका एवं विस्तार को देखा जा सकता है-
 
*(क) 1991 में [[खाड़ी युद्ध]] के दौरान [[अल्बानिया]] को नोटो द्वारा नागरिक एवं सैन्य सहायता प्रदान की गई।
 
*(ख) सामूहिक सुरक्षा के संदर्भ में भी नाटो की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इसमें अंतर्राष्ट्रीय आंतकवाद से निपटने तथा मानवता के लिए खतरा बने “दुष्ट राज्यों” से सुरक्षा की बात की गई। 2002 के प्राग शिखर सम्मेलन में नाटों के अंतर्गत त्वरित कार्यवाही बल (Rapid Response Force) के गठन का प्रस्ताव लाया गया ताकि आतंकवादी हमले और दुष्ट राज्यों की प्रतिक्रियाओं को प्रतिसंतुलित किया जा सके।
 
*(ग) नाटो की सदस्यता में वैचारिक और पूर्व के प्रतिपक्षी गुटों में शामिल देशों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया। 1991 के मिसौरी सम्मेलन में तीन नए राष्ट्रों पोलैण्ड, हंगरी और चेक गण्राज्य को सदस्यता प्रदान की गई। फलतः सदस्य संख्या 19 हो गई और ये तीनों ही शीतयुद्ध काल के एस्टोनिया, लिथुआनिया, लाटविया, स्लोवेनिया, और सदस्यों और सदस्यों की कुल संख्या बढ़कर 26 हो गई। इस तरह अब पूर्वी यूरोप के देश भी नाटोमें सम्मिलित हो गए और यूरोप के एकीकरण को बल मिला।
 
*(घ) यद्यपि आरंभ में रूस ने नाटों के विस्तार पर चिंता जताई थी लेकिन बदलती अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार नाटों सदस्य देशों के साथ पारस्परिक सहयोग हेतु रूस को भी इसके अंतर्गत लाने की बात की जा रही है। नाटो के महासचिव और संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव ने नाटों के विस्तार के सकारात्मक पक्षों पर बल दिया उनके अनुसार यह राजनीतिक-आर्थिक संबंधों को बल प्रदान कर पास्परिक सहयोग को बढ़ावा देगा। नाटो का विस्तार रूस के लिए खतरा नहीं है। नाटो को रूस की आवश्यकता एवं रूस को नाटों की आवश्यकता है।
 
नाटो अपने इस विस्तार से में यूरोप में एक प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में उभरा। शीत युद्ध के काल में जो पश्चिम यूरोप के एकीकरण का प्रतिनिधित्व करता था वही नाटो शीतयुद्धोत्तर काल में सम्पूर्ण यूरोप के एकीकरण का प्रतिनिधित्व करता है।
 
नाटो के विस्तार के पक्ष में जो सकरात्मक बाते कही गई इसके बावजूद उसकी आलोचना भी की जाती है। वस्तुतः नाटो की भूमिका शांति स्थापना, आपसी सहयोग आदि के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका का हनन करती है। समझने की बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में की गई, जिसका उद्देश्य विश्व शांति है जबकि नाटो की स्थापना एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में की गई। किंतु इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में शांति स्थापना हेतु नाटो की भूमिका [[यूएनओ]] के समानांतर दिखती है।
 
चर्चा का परिणति नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी के रूप में सामने आई, जिस पर ४ अप्रैल १९४९ को [[वॉशिंगटन डी॰ सी॰]] में हस्ताक्षर किए गए। इसमें ब्रुसेल्स संधि में शामिल पांच राज्यों, [[बेल्जियम]], [[नीदरलैण्ड]], [[लग्ज़म्बर्ग]], [[फ्रांस]] और [[संयुक्त राजशाही|यूनाइटेड किंगडम]] के साथ [[संयुक्त राज्य अमेरिका]], [[कनाडा]], [[पुर्तगाल]], [[इटली]], [[नार्वे]], [[डेनमार्क]] और [[आइसलैंड]] शामिल थे।
== युद्ध ==
इसमे शामिल किसी भी देश के खिलाफ युद्ध पूरे नाटो देशो के खिलाफ युद्ध माना जाता है यानी सीधे-सीधे 28 देशो के खिलाफ युद्ध।
[[श्रेणी:सैनिक गुट]]
[[श्रेणी:अन्तर्राष्ट्रीय सैन्य संगठन]]