"मदर टेरेसा": अवतरणों में अंतर

No edit summary
छो कुछ कडियाँ सुधारी, मदर के आगे संत लिखा।
पंक्ति 3:
| name = मदर टेरसा <br /> ''अग्नेसे गोंकशे बोजशियु''
| image = MotherTeresa 090.jpg
| caption = संत <i>मदर</i> टेरसा
| dead = मृत
| birth_date = {{birth date|1910|8|26|mf=y}}
पंक्ति 14:
}}
 
'''संत टेरेसा या मदर टेरेसा '''(२६ अगस्त १९१० - ५ सितम्बर १९९७) का जन्म '''अग्नेसे गोंकशे बोजशियु''' के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (आज का सोप्जे, [[मेसेडोनिया गणराज्य]]) में हुआ था। मदर टेरसा [[रोमन कैथोलिक चर्च|रोमन कैथोलिक]] नन थीं, जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। उन्होंने १९५० में [[कोलकाता]] में [[मिशनरीज़ ऑफ चेरिटीचेरिटीज़|मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी]] की स्थापना की। ४५ सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए इन्होंने लोगों की मदद की और साथ ही चेरिटी के मिशनरीज के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया।
 
१९७० तक वे ग़रीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्द हो गयीं, माल्कोम मुगेरिज के कई वृत्तचित्र और पुस्तक जैसे ''समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गोड'' में इसका उल्लेख किया गया। उन्होंने १९७९ में [[नोबेल शांति पुरस्कार]] और १९८० में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान [[भारत रत्न]] प्रदान किया गया। मदर टेरेसा के जीवनकाल में [[मिशनरीज़ ऑफ चेरिटीचैरिटीज़|मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी]] का कार्य लगातार विस्तृत होता रहा और उनकी मृत्यु के समय तक यह १२३ देशों में ६१० मिशन नियंत्रित कर रही थी। इसमें एचआईवी/[[एड्स]], [[कुष्ठ]] और [[तपेदिक]] के रोगियों के लिए धर्मशालाएं/ घर शामिल थे और साथ ही सूप रसोई, बच्चों और परिवार के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय भी थे। मदर टेरसा की मृत्यु के बाद उन्हें [[पोप जॉन पॉल द्वितीय]] ने [[धन्य घोषित]] किया और उन्हें '''कोलकाता की धन्य''' की उपाधि प्रदान की।
 
हार्ट अटैक के कारण 5 सितंबर 1997 के दिन मदर टैरेसा की मृत्यु हुई थी।<ref>{{cite web|title=सेवा की साकार मूर्ति थी "मदर टेरेसा" |url=http://www.patrika.com/news/mother-teresa-was-a-beacon-to-human-kind/1025603|work=पत्रिका समाचार समूह |date=५ सितंम्बर 2014|accessdate=५ सितंम्बर 2014}}</ref>
पंक्ति 27:
 
== विविध पुरुस्कार एवम सम्मान ==
मदर टेरेसा को उनकी सेवाओं के लिये विविध पुरस्कारों एवं सम्मानों से विभूषित किय गया है। १९३१ में उन्हें पोपजान तेइसवें का शांति पुरस्कार और धर्म की प्रगति के टेम्पेलटन फाउण्डेशन पुरस्कार प्रदान किय गया। विश्व भारती विध्यालय ने उन्हें देशिकोत्तम पदवी कीदी जो कि उसकी ओर से दी जाने वाली सर्वोच्च पदवी है। अमेरिका के कैतथोलिककैथोलिक विश्वविध्यलयविश्वविद्यालय ने उन्हे डोक्टोरेट की उपाधि से विभूशितविभूषित किय।किया। भारत सरकार्सरकार द्वारा १९६२ में उन्हें '[[पद्म श्री]]' की उपाधि मिली। १९८८ में ब्रिटेन द्वारा 'आईर ओफ द ब्रिटिश इम्पायर' की उपाधि प्रदान की गयी। [[काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय|बनारस हिंदू विश्वविध्यलयविश्वविद्यालय]] ने उन्हें डी-लिट की उपाधि से विभूषित किया। १९ दिसम्बर १९७९ को मदर टेरेसा को मानव-कल्याण कार्यों के हेतु [[नोबेल पुरस्कार|नोबल पुरस्कार]] प्रदान किया गया। वह तीस्रीतीसरी भारतीय नागरिक है जो संसार में इस सबसे बडी पुरस्कार से सम्मानित की गयी थीं। मदर टेरेसा के हेतु नोबल पुरस्कार की घोषणा ने जहां विश्व की पीडित जनता में प्रसन्नत का संछार हुआ है, वही प्रत्येक भारतीय नागरिकों ने अपने को गौर्वान्वित अनुभव किया। स्थान स्थान पर उन्का भव्या स्वागत किया गया। नार्वेनियन नोबल पुरस्कार के अध्यक्श प्रोफेसर जान सेनेस ने कलकत्ता में मदर टेरेसा को सम्मनित करते हुए सेवा के क्शेत्र में मदर टेरेसा से प्रेरणा लेने का आग्रह सभी नागरिकों से किया। देश की प्रधान्मंत्री तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने मदर टेरेसा का भव्य स्वागत किया। अपने स्वागत में दिये भाषणों में मदर टेरेसा ने स्पष्ट कहा है कि "शब्दों से मानव-जाति की सेवा नहीं होती, उसके लिए पूरी लगन से कार्य में जुट जाने की आवश्यकता है।"
 
मदर टेरेसा के हेतु नोबल पुरस्कार की घोशणा ने जहां विश्व की पीडित जनता में प्रसन्नत का संछार हुआ है, वही प्रत्येक भारतीय नागरिकों ने अपने को गौर्वान्वित अनुभव किया। स्थान स्थान पर उन्का भव्या स्वागत किया गया। नार्वेनियन नोबल पुरस्कार के अध्यक्श प्रोफेसर जान सेनेस ने कलकत्ता में मदर टेरेसा को सम्मनित करते हुए सेवा के क्शेत्र में मदर टेरेसा से प्रेरणा लेने का आग्रह सभी नागरिकों से किया। देश की प्रधान्मंत्री तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने मदर टेरेसा का भव्य स्वागत किया। अपने स्वागत में दिये भाषणों में मदर टेरेसा ने स्पष्ट कहा है कि "शब्दों से मानव-जाति की सेवा नहीं होती, उसके लिए पूरी लगन से कार्य में जुट जाने की आवश्यकता है।" उन्होंने यह भी घोषणा की है कि भविष्य में किसी प्रकार के स्वागत समारोह में सम्मिलित नहीं होंगी और निरंतर सेव कार्य में लगी रहेंगी। निस्चित रूप से मदर टेरेसा निष्काम कार्य में विश्वास करने वाली हैं। कर्मयोग का जो दर्शन गीता में परिलक्षित होता है वह मदर टेरेसा के जीवन में छरितार्थ हुआ है।
 
==संत की उपाधि ==
दिनांक सितम्बर 04०९, 2016२०१५ को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभषितविभूषित किया। <ref>http://www.jagran.com/delhi/new-delhi-city-mother-teresa-canonization-today-14632595.html?src=p1</ref>
 
== आलोचना ==
कई व्यक्तियों, सरकारों और संस्थाओं के द्वारा उनकी प्रशंसा की जाती रही है, यद्यपि उन्होंने आलोचना का भी सामना किया है। इसमें कई व्यक्तियों, जैसे क्रिस्टोफ़र हिचेन्स, माइकल परेंटी, [[अरूप चटर्जी]] (विश्व हिन्दू परिषद) द्वारा की गई आलोचना शामिल हैं, जो उनके काम ([[धर्मांतरण|धर्मान्तरण]]) के विशेष तरीके के विरुद्ध थे। इसके अलावा कई चिकित्सा पत्रिकाओं में भी उनकी धर्मशालाओं में दी जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा के मानकों की आलोचना की गई और अपारदर्शी प्रकृति के बारे में सवाल उठाए गए, जिसमें दान का धन खर्च किया जाता था।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==