"कला": अवतरणों में अंतर
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[[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के मुख से निकला “कला में मनुष्य अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है ” तो [[प्लेटो]] ने कहा - “कला सत्य की अनुकृति के अनुकृति है।”
[[लेव तालस्तोय|टालस्टाय]] के शब्दों में अपने भावों की क्रिया
कला में ऐसी शक्ति होनी चाहिए कि वह लोगों को संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठाकर उसे ऐसे ऊँचे स्थान पर पहुँचा दे जहाँ मनुष्य केवल मनुष्य रह जाता है। कला व्यक्ति के मन में बनी स्वार्थ, परिवार, क्षेत्र, धर्म, भाषा और जाति आदि की सीमाएँ मिटाकर विस्तृत और व्यापकता प्रदान करती है। व्यक्ति के मन को उदात्त बनाती है। वह व्यक्ति को “स्व” से निकालकर “वसुधैव कुटुम्बकम्” से जोड़ती है।
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