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'''लाइपत्सिग का युद्ध''' (Battle of Leipzig या Battle of the Nations) [[सैक्सोनी]] के [[लाइपत्सिग]] नामक स्थान पर १६ से १९ अक्टूबर, १८१३ को लड़ा गया था। [[रूस]], [[प्रशा]], [[आस्ट्रिया]] और [[स्वीडेन]] कि संयुक्त सेनाओं ने रूस के [[अलेक्सांद्र प्रथम|जार अलेक्सांद्र प्रथम]] के नेतृत्व नेपोलियन को पराजित कर दिया। इस युद्ध में लगभग 600,000 सैनिकों ने भाग लिया, इस प्रकार [[प्रथम विश्वयुद्ध]] के पहले यूरोप की यह सबसे बड़ी लड़ाई थी।
 
[[नेपोलियन का रूस पर आक्रमण|रूस अभियान]] में नेपोलियन की असफलता का समाचार पाते ही [[जर्मनी]] में फ्रांस से प्रतिशोध लेने की भावना जागने लगी। लोग देश को नेपोलियन के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए संघर्ष के लिए तैयार हो गए। राष्ट्रीयता का जबर्दस्त उबाल आया। इस तरह 1813 में [[प्रशा]] ने फ्रांस के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। किन्तु प्रशा की सेना को नेपोलियन ने पीछे ढलेल दिया।
 
1813 ई. में प्रशा, आस्ट्रिया, इंग्लैंड, रूस तथा स्वीडन ने मिलकर नेपोलियन के विरूद्ध एक गुट का निर्माण किया और नेपोलियन के विरूद्ध दक्षिणी जर्मनी के [[लाइपत्सिग]] के युद्ध में उसे पराजित किया इसे “राष्ट्रों के युद्ध” (वार ऑफ नेशन्स) के नाम से जाना जाता है। लाइपत्सिग की पराजय ने नेपोलियन के समूचे तंत्र को ध्वस्त कर दिया, [[महाद्वीपीय व्यवस्था]] समाप्त हो गई। अंततः नेपोलियन ने आत्मसमर्पण कर दिया और फ्रांस के सिंहासन से अपने समस्त अधिकार त्याग दिए। उसे [[इटली]] के पश्चिम में [[एल्बा द्वीप]] देकर वहां का स्वतंत्र शासक बना दिया गया और फ्रांस में [[लुई अट्ठारहवाँ|लुई 18वें]] को सम्राट नियुक्त किया गया। नेपोलियन से छुटकारा पाने के बाद यूरोप की समस्याओं को सुलझाने के लिए 1814 ई. में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में [[मेटरनिख]] की अध्यक्षता में एक सम्मेलन हुआ जिसे [[वियना कांगे्रस]] के नाम से जाना जाता है। फ्रांस की भौगोलिक सीमा वही रखी गई जो 1792 में थी और वहां बूर्वोवंश के शासन को पुनर्स्थापित किया गया।
 
फ्रांस में लुई 18वें अव्यवस्थित शासन से जनता असंतुष्ट थी। नेपोलियन को इन परिस्थितियों की सूचना मिली तो एक बार पुनः वह फ्रांस पर अधिकार करने के लिए मार्च 1815 में एल्बा से चलकर फ्रांस आया। वहां की जनता ने उसका स्वागत किया। अतः लुई 18वां फ्रांस छोड़कर भाग गया और नेपोलियन पुनः फ्रांस का सम्राट बन बैठा। किन्तु उसके बाद केवल 100 दिन की वह शासन कर सका। नेपोलियन के पुनः गद्दी प्राप्त करने की सूचना जब यूरोप में पहुंची तो सब लोग चौकन्ना हो गए। वियना कांगे्रस को एक बार फिर नेपोलियन के भूत का भय सताने लगा। अतः अपने मतभेद भूलकर एकजुट हो नेपोलियन का मुकाबला करने का निश्चय किया। अतः जून 1815 में नेपोलियन और मित्र राष्ट्रों के बीच अंतिम निर्णायक युद्ध [[वाटरलू]] के मैदान में हुआ जिसमें नेपोलियन पराजित हुआ। उसे बंदी बनाकर सुदूर [[अटलांटिक महासागर]] के सुनसान द्वीप [[सेंट हेलेना]] में निर्वासित जीवन जीने को भेज दिया गया और वहीं 6 वर्ष बाद 2 मई 1821 को उसकी मृत्यु हो गई।
 
[[श्रेणी:यूरोप का इतिहास]]