"संख्या सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Lehmer sieve.jpg|right|thumb|300px|लेमर चलनी (A Lehmer sieve), जो 'आदिम कम्प्यूटर' कही जा सकती है। किसी समय इसी का उपयोग करके अभाज्य संख्याएँ प्राप्त की जातीं थीं तथा सरल डायोफैण्टीय समीकरण हल किए जाते थे।]]
 
'''संख्या सिद्धांत''' (Number theory) सामान्यत: सभी प्रकार की [[संख्या|संख्याओं]] के गुणधर्म का अध्ययन करता है किन्तु विशेषत: यह [[प्राकृतिक संख्या|प्राकृतिक संख्याओं]] 1, 2, 3....के गुणधर्मों का अध्ययन करता है। पूर्णता के विचार से इन संख्याओं में हम ऋण संख्याओं तथा शून्य को भी सम्मिलित कर लेते हैं। जब तक निश्चित रूप से न कहा जाए, तब तक संख्या से कोई प्राकृतिक संख्या, धन, या ऋण पूर्ण संख्या या शून्य समझना चाहिए। संख्यासिद्धांत को [[गाउस]] (Gauss) 'गणित की रानी' कहता था। संख्या सिद्धान्त, [[शुद्ध गणित]] की शाखा है।
 
'संख्या सिद्धान्त' के लिये "[[अंकगणित]]" या "[[उच्च अंकगणित]]" शब्दों का भी प्रयोग किया जता है। ये शब्द अपेक्षाकृत पुराने हैं और अब बहुत कम प्रयोग किये जाते हैं।
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=== बीजीय संख्या सिद्धान्त ===
बीजीय संख्या सिद्धान्त (algebraic numernumber theory) में अध्ययन की जाने वाली संख्याओं का और अधिक सामान्यीकरण किया गया है और केवल पूर्नांकों के गुणों का अध्ययन करने के स्थान पर '[[बीजीय संख्या]]ओं' के गुणों का अध्ययन किया जाता है। कोई भी संख्या जो किसी पूर्णांक गुणाकों वाले एकचरीय बहुपदीय समीकरण का [[मूल]] हो उसे 'बीजीय संख्या' कहते हैं।
 
=== ज्यामितीय संख्या सिद्धान्त ===