"खदीजा बिन्त खुवायलद": अवतरणों में अंतर

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परिचय​:
ख़दीज़ा या ख़दीज़ा-बिन्त-ख्व़ालिद (अरबी: خديجة بنت خويلد) या ख़दीज़ा-अल-कुब्र (स​.५५५ या ५६७-६२० इसवी)इस्लामी पैगंबर मुहम्मद की पहली पत्नी थी। इन्हें मुसलमानों ने "विश्वासियों की माँ" (अर्थात, मुसलमान) माना। वह इस्लाम धर्म स्विकार करनेवाली पहली व्यक्ति थी।
 
ख़दीज़ा या ख़दीज़ा-बिन्त-ख्व़ालिद खुवायलद(अरबी: خديجة بنت خويلد) या ख़दीज़ा-अल-कुब्र (स​.५५५ या ५६७-६२० इसवी)इस्लामी पैगंबर मुहम्मद की पहली पत्नी थी। इन्हें मुसलमानों ने "विश्वासियों की माँ" (अर्थात, मुसलमान) माना। वह इस्लाम धर्म स्विकारस्वीकार करनेवाली पहली व्यक्ति थी।
 
ख़दीजा के दादा, असद इब्न अब्द-अल-उज्जा, असद कबीले के [मक्का में कुरैश़ जनजाति के पूर्वज] थे। उनके पिता, ख्व़ालिद इब्न असद, एक व्यापारी थे। सन ५८५ में सैक्रलिजस (पवित्र वस्तु दूषक) युद्ध में कुछ परंपराओं के अनुसार, वह मर गए, लेकिन दूसरों के अनुसार, जब खादीजा ने ५९५ में मुहम्मद से शादी कर ली,वह तब भी जिंदा थे । उनकी बहन, उम्म हबीब बिन्त असद, मुहम्मद की मातृवंशीय परदादी थी।खदीजा की मां फातिमा बिन्त ज़ैदह्, जिनकी सन ५७५ के आसपास मृत्यु हो गई, कुरैश़ के आमिर इब्न लुऐइ कबीले की सदस्य थी और मोहम्मद की मां की तिसरी चचेरी ब़हन।
 
खदीजाख़दीजा ने तीन बार शादी की और उनके सभी विवाह से बच्चे हुए। उनके विवाह के क्रम में बहस है, जबकि आमतौर पर यह माना जाता है कि उन्होने पहली अबु हाला मलक इब्न नबश इब्न जरारा इब्न अत तमिमी सेऔर दूसरी अतीक इब्न ऐद इब्न अब्दुल्ला अल मख्जुमी से शादी कर ली। उनके पहले पति से उन्हे दो बेटे, जिनके दिए गए नाम आम तौर पर स्त्री के, हाला और हिंद थे।व्यवसाय में सफल होने से पहले ही उनके पहले पति की मृत्यु हुई ।दुसरे पति अतीक से खदीजाख़दीजा को एक बेटी हिंदाह नामित हुई। इस शादी के बाद भी खदीजा ख़दीजा विधवा हुई।
 
खदीजाख़दीजा एक बहुत ही सफल व्यापारी थी। यह कहा जाता है कि जब कुरैश के व्यापार कारवां जब सर्दियों में यात्रा करने के लिए सीरिया या गर्मी में यात्रा पर यमन के लिए एकत्र होते,तब खादीजाख़दीजा के कारवां को भी कुरैश के अन्य सभी व्यापारियों के कारवांओं के साथ रखा जाता था। उन्हे आमेएरत्-कुरैश ("कुरैश की राजकुमारी"), अल-ताहिरा("शुद्ध एक"),और खदीजा अल-कुब्र (खदीजाख़दीजा "महान")नामों से जाना जाता था।कहा जाता है कि वह अन्न और वस्त्र से गरीबों की, गरीब रिश्तेदारों को आर्थिक रूप से और गरीबों की शादी के लिए हमेशा सहायता किया करती थी।खदीजाथी।ख़दीजा मूर्तियों में न विश्वास करती थी और न ही उनकी पूजा में, जिसे इस्लाम पूर्व अरब संस्कृति में असामान्य कहा गया था। अन्य सूत्रों के मुताबिक, हालांकि, इस्लाम स्वीकारने से पूर्व वह अल​-ऊज्ज़ की मूर्ति अपने घर में रखती थी।
 
खदीजाख़दीजा व्यापार कारवां के साथ यात्रा नहीं करती थी,बल्कि नौकरों को अपनी ओर से व्यापार करने के लिए कमीशन पर नियुक्त करती थी । इस. ५९५ में सीरिया में एक सौदे के लिए खदीजाख़दीजा को एक एजेंट की जरूरत पडी। अबू तालिब इब्न अब्द अल मुतालीब ने उसके दूर के चचेरे भाई मोहम्मद इब्न अब्दुल्ला की सिफारिश की। मुहम्मद ने अपने चाचा अबू तालिब के कारवां के व्यवसाय में अल सादिक ( "सच्चा") और अल-अमीन ("विश्वसनीय" या "ईमानदार")का खिताब अर्जित किया ।किया। खदीजाख़दीजा ने मुहम्मद को काम पर रखा,तब वे २५ साल के थे,खदीजाख़दीजा के रिश्तेदार खजिमह इब्न हाकिम ने खदीजा से कहा कि उसे मुहम्मद का कमीशन दोगुना करना होगा।
 
खदीजाख़दीजा ने अपने सेवकों, में से मय्सरह को मुहम्मद की सहायता के लिए भेजा । लौटने पर, मय्सरह ने बताया कि मुहम्मद ने बडे ही प्रामाणिकता से व्यवसाय किया है जिसके परिणामस्वरूप उन्हे दोगुना लाभ हुआ है । मय्सरह ने यह भी कहा कि वापसी यात्रा पर, मुहम्मद एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ गए। तभी वहाँ से गुजरते हुए एक भिक्षु ने मय्सरह को बताया कि, " इस पेड़ के नीचे जो बैठा है यह कोई और नहीं है, एक नबी है ।" मय्सरह ने यह भी दावा किया कि जब वह मुहम्मद के पास खड़ा था और वे सो गए, देखा कि मुहम्मद के ऊपर खड़े दो स्वर्गदूतों ने उन्हे गर्मी और सूरज की चमक से बचाने के लिए घना बादल बना दिया।
खदीजा एक बहुत ही सफल व्यापारी थी। यह कहा जाता है कि जब कुरैश के व्यापार कारवां जब सर्दियों में यात्रा करने के लिए सीरिया या गर्मी में यात्रा पर यमन के लिए एकत्र होते,तब खादीजा के कारवां को भी कुरैश के अन्य सभी व्यापारियों के कारवांओं के साथ रखा जाता था। उन्हे आमेएरत्-कुरैश ("कुरैश की राजकुमारी"), अल-ताहिरा("शुद्ध एक"),और खदीजा अल-कुब्र (खदीजा "महान")नामों से जाना जाता था।कहा जाता है कि वह अन्न और वस्त्र से गरीबों की, गरीब रिश्तेदारों को आर्थिक रूप से और गरीबों की शादी के लिए हमेशा सहायता किया करती थी।खदीजा मूर्तियों में न विश्वास करती थी और न ही उनकी पूजा में, जिसे इस्लाम पूर्व अरब संस्कृति में असामान्य कहा गया था। अन्य सूत्रों के मुताबिक, हालांकि, वह अल​-ऊज्ज़ की मूर्ति अपने घर में रखती थी।
 
खदीजाख़दीजा ने उसके चचेरे भाई वरक़ह इब्न नवफल बिन असद इब्ने अब्दुल्-ऊज़्ज़ वरक़ह से सलाह ली।उस ने कहा कि मय्सरह ने जो ख्वाब देखा था सच था, मुहम्मद, जो पहले से ही लोगों को उम्मीद थी की नबी होंगे, वास्तव में था। यह भी कहा जाता है कि खदीजाख़दीजा ने एक सपना देखा जिसमें सूरज उसके आंगन में आसमान से उतरा है,और पूरी तरह से उसके घर को रोशन किया है। उसके चचेरे भाई वरक़ह ने उसे बताया कि चिंतित होने की बात नहीं, सूरज एक संकेत है कि उसके घर पैगंबर की कृपा होगी ।इस पर माना जाता है कि खदीजाख़दीजा ने मुहम्मद से शादी का प्रस्ताव रखा । कई अमीर कुरैश पुरुष पहले से ही खदीजाख़दीजा से शादी के लिए हाँ कह चुके थे, लेकिन खदीजाख़दीजा ने सभी को मना कर दिया गया था।
खदीजा व्यापार कारवां के साथ यात्रा नहीं करती थी,बल्कि नौकरों को अपनी ओर से व्यापार करने के लिए कमीशन पर नियुक्त करती थी । इस. ५९५ में सीरिया में एक सौदे के लिए खदीजा को एक एजेंट की जरूरत पडी। अबू तालिब इब्न अब्द अल मुतालीब ने उसके दूर के चचेरे भाई मोहम्मद इब्न अब्दुल्ला की सिफारिश की। मुहम्मद ने अपने चाचा अबू तालिब के कारवां के व्यवसाय में अल सादिक ( "सच्चा") और अल-अमीन ("विश्वसनीय" या "ईमानदार")का खिताब अर्जित किया । खदीजा ने मुहम्मद को काम पर रखा,तब वे २५ साल के थे,खदीजा के रिश्तेदार खजिमह इब्न हाकिम ने खदीजा से कहा कि उसे मुहम्मद का कमीशन दोगुना करना होगा।
 
मुहम्मद से विवाह :
खदीजा ने अपने सेवकों, में से मय्सरह को मुहम्मद की सहायता के लिए भेजा । लौटने पर, मय्सरह ने बताया कि मुहम्मद ने बडे ही प्रामाणिकता से व्यवसाय किया है जिसके परिणामस्वरूप उन्हे दोगुना लाभ हुआ है । मय्सरह ने यह भी कहा कि वापसी यात्रा पर, मुहम्मद एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ गए। तभी वहाँ से गुजरते हुए एक भिक्षु ने मय्सरह को बताया कि, " इस पेड़ के नीचे बैठा है यह कोई और नहीं है, एक नबी है ।" मय्सरह यह भी दावा किया कि जब वह मुहम्मद के पास खड़ा था और वे सो गए, देखा कि मुहम्मद के ऊपर खड़े दो स्वर्गदूतों ने उन्हे गर्मी और सूरज की चमक से बचाने के लिए घना बादल बना दिया।
 
ख़दीजा ने एक विश्वासू सहेली नफीसा पर, मुहम्मद को शादी करने पर विचार पूछने का जिम्मा सौंपा ।सबसे पहले मुहम्मद ने संकोच किया क्योंकि उनके पास विवाह निभाने हेतु पैसे नहीं थे। नफीसा ने पूछा कि क्या अगर एक औरत जो विवाह के लिए सभी साधन जुटाए, तो वह शादी करने पर विचार करेगा।इसपर​ मुहम्मद ख़दीजा साथ मिलने के लिए सहमत हुए, और इस बैठक के बाद उन्होंने अपने-अपने चाचा से सलाह ली। चाचा ने शादी के लिए सहमति व्यक्त की, और मुहम्मद के चाचा ख़दीजा के लिए एक औपचारिक प्रस्ताव रखने के लिए राजी हुए। यह विवादित है, कि केवल हमजा बिन अब्दुल मुत्तलिब या केवल अबू तालिब या दोनों, जो इस काम पर मुहम्मद के साथ गये थे। ख़दीजा के चाचा ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, और शादी हुई ।
खदीजा ने उसके चचेरे भाई वरक़ह इब्न नवफल बिन असद इब्ने अब्दुल्-ऊज़्ज़ वरक़ह से सलाह ली।उस ने कहा कि मय्सरह ने जो ख्वाब देखा था सच था, मुहम्मद, जो पहले से ही उम्मीद थी की नबी होंगे, वास्तव में था। यह भी कहा जाता है कि खदीजा ने एक सपना देखा जिसमें सूरज उसके आंगन में आसमान से उतरा है,और पूरी तरह से उसके घर को रोशन किया है। उसके चचेरे भाई वरक़ह ने उसे बताया कि चिंतित होने की बात नहीं, सूरज एक संकेत है कि उसके घर पैगंबर की कृपा होगी ।इस पर माना जाता है कि खदीजा ने मुहम्मद से शादी का प्रस्ताव रखा । कई अमीर कुरैश पुरुष पहले से ही खदीजा से शादी के लिए हाँ कह चुके थे, लेकिन खदीजा ने सभी को मना कर दिया गया था।