"गंगा सिंह": अवतरणों में अंतर

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'''विवाह :'''
 
इनका पहला विवाह [[प्रतापगढ़]] राज्य की बेटी वल्लभ कुंवर से १८९७ में, और दूसरा विवाह [[बीकमकोर]] की राजकन्या भटियानी जी से हुआ जिनसे इनके दो पुत्रियाँ और चार पुत्र हुए|
 
'''कार्यक्षेत्र :'''
 
पहले [[विश्वयुद्ध]] में एक फ़ौजी अफसर के बतौर गंगासिंह ने अंग्रेजों की तरफ से ‘बीकानेर कैमल कार्प्स’ के प्रधान के रूप में [[फिलिस्तीन]], [[मिश्र]] और [[फ़्रांस]] के युद्धों में सक्रिय हिस्सा लिया | १९०२ में ये [[प्रिंस ऑफ़ वेल्स]] के और १९१० में [[किंग जॉर्ज पंचम]] के [[ए डी सी]] भी रहे|
 
महायुद्ध-समाप्ति के बाद अपनी पुश्तैनी बीकानेर रियासत में लौट कर उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और विकास की गंगा बहाने के लिए जो-जो काम किये वे किसी भी लिहाज़ से साधारण नहीं कहे जा सकते| १९१३ में उन्होंने एक चुनी हुई जन-प्रतिनिधि सभा का गठन किया, १९२२ में एक [[मुख्य न्यायाधीश]] के अधीन अन्य दो न्यायाधीशों का एक उच्च-न्यायालय स्थापित किया और बीकानेर को न्यायिक-सेवा के क्षेत्र में अपनी ऐसी पहल से देश की पहली रियासत बनाया| अपनी सरकार के कर्मचारियों के लिए उन्होंने ‘एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम’ और जीवन-बीमा योजना लागू की, निजी बेंकों की सेवाएं आम नागरिकों को भी मुहैय्या करवाईं, और पूरे राज्य में बाल-विवाह रोकने के लिए [[शारदा एक्ट]] कड़ाई से लागू किया! १९१७ में ये ‘सेन्ट्रल रिक्रूटिंग बोर्ड ऑफ़ इण्डिया’ के सदस्य नामांकित हुए और इसी वर्ष उन्होंने ‘इम्पीरियल वार कांफ्रेंस’ में, १९१९ में ‘पेरिस शांति सम्मलेन’ में और ‘इम्पीरियल वार केबिनेट’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया|
१९२० से १९२६ के बीच गंगा सिंह ‘इन्डियन चेंबर ऑफ़ प्रिन्सेज़’ के चांसलर बनाये गए| इस बीच १९२४ में ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के पांचवें अधिवेशन में भी इन्होंने भारतीय प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया|
 
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'''प्रमुख प्रशासनिक योगदान :'''
 
उन्होंने १८९९-१९०० के बीच पड़े कुख्यात ‘छप्पनिया काल’ की ह्रदय-विदारक विभीषिका देखी थी, और अपनी रियासत के लिए पानी का इंतजाम एक स्थाई समाधान के रूप में करने का संकल्प लिया था और इसीलिये सबसे क्रांतिकारी और दूरदृष्टिवान काम, जो इनके द्वारा अपने राज्य के लिए किया गया वह था- [[पंजाब]] की [[सतलज]] नदी का पानी ‘गंग‘[[गंग-केनाल’केनाल]]’ के ज़रिये बीकानेर जैसे सूखे प्रदेश तक लाना और नहरी सिंचित-क्षेत्र में किसानों को खेती करने और बसने के लिए मुफ्त ज़मीनें देना|
 
[[श्रीगंगानगर]] शहर के विकास को भी उन्होंने प्राथमिकता दी वहां कई निर्माण करवाए और बीकानेर में अपने निवास के लिए पिता लालसिंह के नाम से ‘लालगढ़ पैलेस’ बनवाया| बीकानेर को जोधपुर शहर से जोड़ते हुए रेलवे के विकास और बिजली लाने की दिशा में भी ये बहुत सक्रिय रहे| जेल और भूमि-सुधारों की दिशा में इन्होंने नए कायदे कानून लागू करवाए, नगरपालिकाओं के स्वायत्त शासन सम्बन्धी चुनावों की प्रक्रिया शुरू की, और राजसी सलाह-मशविरे के लिए एक मंत्रिमंडल का गठन भी किया| १९३३ में लोक देवता रामदेवजी की समाधि पर एक पक्के मंदिर के निर्माण का श्रेय भी इन्हें है!
 
'''सम्मान :'''
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२ फरवरी १९४३ को बंबई में ६२ साल की उम्र में आधुनिक बीकानेर के निर्माता जनरल गंगासिंह का निधन हुआ |
 
 
इन सब चीज़ों के बावजूद कुछ लोग उन्हें एक निहायत अलोकतांत्रिक, घोर सुधार-विरोधी, शिक्षा-आंदोलनों को कुचलने वाले, अप्रतिम जातिवादी, जनता पर तरह-तरह के ढेरों टेक्स लगाने वाले अंगरेज़ परस्त और बीकानेर राज्य से आर्य समाज और प्रजा परिषद् के सदस्यों को देश निकाला देने वाले, एक विजातीय स्त्री से प्रेम करते अपने भाई विजय सिंह को क्रोध में आ कर ब्लेंक-शूट कर देने वाले गंगासिंह के रूप में भी याद करते हैं |जनरल गंगासिंह के पक्ष में जितनी बातें लिखी मिलती हैं उतनी ही उनके विपक्ष में भी| बीकानेर में स्वाधीनता-सेनानियों, कांग्रेस से जुड़े पुराने नेताओं और प्रजामंडल के संघर्ष जैसे आन्दोलनों को कुचलने वाले इस असाधारण राजा के बारे में खुली निंदा से भरे इतिहास के पृष्ठ भी लिखे गए हैं! उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी कुछ लोमहर्षक कहानियां आज भी बीकानेर के पुराने लोगों को याद हैं! पर ये बात निर्विवाद है कि उन जैसा विवादास्पद राजा बीकानेर में आज तक नहीं हुआ |
'''आलोचना :'''
इन सब चीज़ों के बावजूद कुछ लोग उन्हें एक निहायत अलोकतांत्रिक, घोर सुधार-विरोधी, शिक्षा-आंदोलनों को कुचलने वाले, अप्रतिम जातिवादी, जनता पर तरह-तरह के ढेरों टेक्स लगाने वाले अंगरेज़ परस्त और [[बीकानेर]] राज्य से [[आर्य समाज]] और [[प्रजा परिषद्]] के सदस्यों को देश निकाला देने वाले, एक विजातीय सुन्दरी (जैन) स्त्री से प्रेम करते अपने भाई विजय सिंह को क्रोध में आ कर ब्लेंक-शूट कर देने वाले गुस्सैल शासक गंगासिंह के रूप में भी याद करते हैं | जनरल गंगासिंह के पक्ष में जितनी बातें स्थानीय इतिहास में लिखी मिलती हैं- उतनी ही उनके विपक्ष में भी| बीकानेर में स्वाधीनता-सेनानियों, [[कांग्रेस ]] से जुड़े पुराने नेताओं और [[प्रजामंडल के संघर्ष]] जैसे आन्दोलनों को कुचलने वाले इस असाधारण राजा के बारे में खुली निंदा से भरे इतिहास के पृष्ठ भी लिखे गए हैं! उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी कुछ लोमहर्षक कहानियां आज भी बीकानेर के पुराने लोगों को याद हैं!... पर ये बात निर्विवाद है कि उन जैसा विवादास्पद राजा बीकानेर में आज तक नहीं हुआ |
 
[[श्रेणी:राजस्थान के महाराजा]]