"वीराना (1988 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

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महेन्द्र प्रताप इस मामले की तहकीक़ात का निश्चय करते हैं। उनके छोटे भाई समीर प्रताप (विजयेंद्र घाटगे) इस डायन का शिकार करने की ठानते हैं। इधर उनकी पत्नी प्रीति अपनी बेटी और भतीजी का वास्ता देकर जाने से रोकती है। लेकिन अभी वह कुछ ही सीढ़ियाँ उतरे थे और महेन्द्र प्रताप बताते हैं कि उन्हें अपने भाई पर पूरा यकीन है और उनके पूर्वजों से जिनसे भी लोगों ने न्याय माँगी उनका पूरा सहयोग दिया। वे अपने भाई को बतौर तोहफा "ॐ" शब्द देते हैं और उसके सुभाग्य की कामना देते हैं। ज्यों ही समीर अपनी कार पर रवाना होकर जंगल से गुजरता है, उसे एक बेहद खूबसूरत युवती मिलती है जैसा कि उस देहाती ने उल्लेख कराया था। वह युवती समीर से कार पर लिफ्ट मांगती है। वह लोग एक पुरानी हवेली पहुँचते हैं जिसके पीछे ही जंगलों से घिरा एक झील मौजूद है। वह समीर को अपनी मादक अदाओं से फाँसती है और वह युवती साथ बाथटब में नहाने को रिझाती है। इस तरह उसका यह मन बहलाने वाला नाटक उसके साथ शारीरिक संबंध तक पहुँचता वह उसकी गर्दन से उस चमगादड़नुमा लाॅकेट खींच डालता है। इसके साथ ही उस लड़की का घिनौना रूप सामने आता हो जो खुद को डायन नकिता बताती है। समीर चूँकि उसकी कमजोरी जानता था और इसलिए वह उस "ॐ" के जरीए लाचार करा देता है। समीर प्रताप सिंह उस डायन को गाँव की सरहद तक लाते है और ठाकुर के आदेश पर स्थानीय लोग उसे फाँसी पर लटका देते हैं। वहीं एक तांत्रिक बाबा, अपने अनुचरों साथ किसी तरह देर रात लाश चुराकर वापिस मंदिर ले आते हैं, जहाँ उसे एक पत्थर के नक्काशीदार ताबुत में रखते है और प्रण लेते है कि उसे वे नया शरीर दिला कर रहेंगे। वह शरीर आखिर में ठाकुर महेन्द्र प्रताप की बेटी ही शिकार होती है।
 
कुछ दिन उनके खुशनुमा और शांत समय गुजरते रहते हैं, दोनों भाई घंटों अपनी खुशियों में मग्न रहते और समीर की पत्नी प्रीति भी अपनी नन्ही बच्चियों उनके देवर की बेटी यास्मीन और सगी बेटी साहिला की प्रेमपूर्वक समान रूप से परवरिश करती। आखिर में, एक रोज मुँह-सुबह के वक्त, छोटे ठाकुर साहब को अपनी भतीजी, यास्मीन को उन्हें मसूरी के बाॅर्डिंग स्कूल भेजने जाते हैं। पर जब वह लोग सुनसान जंगली वीराने से गुजरते है, कार का इंजिन गर्म पड़ जाता है और बंद होता है। अपने अंकल की बात मानते हुए छोटी यास्मीन कार पर ठहर इंतजार करती है और वह रेडियेटर के लिए पानी लेने चल पड़ते हैं। मगर तभी, वह तांत्रिक बाबा झाड़ियों की ओट से बाहर आकर, बच्ची को सम्मोहित करता है, और उसकी फ्राॅक का टुकड़ा और बालों की लट से एक गुड़िया बनाता है। फिर उस गुड़िया को काँच की बोतल को उस डायन की कब्र तक पहुँचाता है। वहीं कार में मौजूद यास्मीन भी सम्मोहन के प्रभाव में उस मंदिर की ओर चले जाती है। इस दरम्यान, समीर प्रताप पानी भरे कन्सतर साथ लौटते है और कार में बच्ची नदारद पाकर अचंभित होता है। वह निशानों का पीछा करता है और बाद में खुद को हैरान कर देने वाले ऐसे इलाके पहुँचता है जो घनी झाड़ियों से ढका हुआ था।था।वहीं दूसरी तरफ, यास्मीन उस शैतानों की मांद में दाखिल होती है और उस डायन के ताबुत निकट पहुँचती है। तभी आर्श्चयचकित क्षण में, वह डायन जाग जाती है और यास्मीन को अपने भीतर खींच लेती है। मौके पर पहुँचे समीर प्रताप बच्ची को बचाने की कोशिश करते है मगर ताबुत को खोलने में उनको देरी पड़ जाती है। उतने ही वक्त में, डायन की दुष्टात्मा अब यास्मीन के शरीर में समा जाती है। इतने में ही, समीर प्रताप अपनी भतीजी को बचाने की नाकामयाबी पर असहाय होते है जब उस तांत्रिक के आदमी उसे घेर लेते। उसे बंधक बनाया जाता है और मार दिया जाता है।
 
तांत्रिक वापिस यास्मीन को लेकर उसके पिता ठाकुर महेन्द्र प्रताप के हवेली ले चलते है। तांत्रिक अपनी मनगढंत खबर में महेन्द्र प्रताप के परिवार को बताता है उनका भाई जंगल में आए भयानक तुफान में फंस नदी में भटक कर मारा जाता है और स्वयं लापता हो जाता है। यास्मीन को उनके कमरे पहुँचाकर उसे सोने दिया जाता है, बड़े ठाकुर साहब अपने 2–3 नौकरो को उनके जिम्मे सौंपता है और सीढ़ियों के नीचे रुके उस तांत्रिक बाबा से मिलता है। बाबा अब ठाकुर से लौटने की इजाजत माँगता है लेकिन ठाकुर साहब उनसे रुकने की दर्खास्त करते है और यास्मीन की जान बचाने के एवज में उसे उसका सेवक बनाते है।
 
== चरित्र ==