"वीराना (1988 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
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'''वीराना''' ([[अंग्रेजी]] (उच्चारण); Veerana) (डरावने बीहड़) वर्ष १९८८ की प्रदर्शित एक भारतीय हाॅर्रर (डरावनी) फ़िल्म है, जिसका निर्माण रामसे बंधुओं ने किया था। इसे मारियो-बावा शैली में फ़िल्मांकन किया गया जिसके लिए रंगीन जैलों की मदद से डरावना वातावरण रचा जा सका। फ़िल्म का संगीत निर्देशन [[बप्पी लहरी]] ने किया था तथा गायकी में सुमन कल्याणपुर, मुन्ना अज़ीज और
==सारांश==
<ref>http://indianexpress.com/article/news-archive/web/return-of-the-bgrade-ghouls/</ref> फ़िल्म की शुरुआत एक युवा लड़के से होती है जिसे एक विशाल गुफा के पिंजरे में कैद रखा है। जो कुछ पुजारियों और गुंडे किस्म के लोगों से घिरा हुआ है। वह उनसे रिहाई की विनती करता है और पुछता है कि वे आखिर उनसे चाहते क्या है। पुजारी बताता है कि उन्हें सिर्फ उसका खून और गोश्त चाहिए ताकि नकिता को जीवित किया जा सके। उसी क्षण एक बेहद खूबसूरत युवती के रूप में एक डायन पहुँचती है और गुफा में दाखिल होती है। फिर वह अपने गले से चमगादड़नुमा लाॅकेट उतारती है और एक डरावनी शक्ल में बदलकर, उस शख्स को मार डालती है। ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह (कुलभूषण खरबंदा) को तब नजदीकी जंगल में चल रहे डायन नकिता (कमल राॅय) द्वारा दहशत व तबाही की खबर मालूम होती है। एक रात, उनकी छोटी बेटी उनके यहां आकर बताती है कि गाँव वालों को वहां एक लाश मिली है। वहां पहुँचने पर गाँव के लोगों से घिरे उस अंजान व्यक्ति की लाश देखने मिलती है। पुछने पर बताया गया कि ऐसा जंगल में अक्सर रहस्यमय ढंग से विचरने वाली औरत का काम हो सकता है। जिसे लोग डायन कहते हैं। मगर समीर ठाकुर ऐसे चुड़ैल व शैतानों को एक कोरा अंधविश्वास बताते हैं। पर उनमें से एक व्यक्ति के मुताबिक कुछ वर्ष पहले जब वह नजदीकी शहर से गाँव लौट रहा था, वह अपने रास्ते से भटक गया था और चलते-चलते वह जंगल में घुसते साथ वहां एक युवती को विचरते देख लेता है। जो एक चमगादड़ में बदल जाती हो और उसके चेहरे पर हमला करती है।
कुछ दिन उनके खुशनुमा और शांत समय गुजरते रहते हैं, दोनों भाई घंटों अपनी खुशियों में मग्न रहते और समीर की पत्नी प्रीति भी अपनी नन्ही बच्चियों उनके देवर की बेटी यास्मीन और सगी बेटी साहिला की प्रेमपूर्वक समान रूप से परवरिश करती। आखिर में, एक रोज मुँह-सुबह के वक्त, छोटे ठाकुर साहब को अपनी भतीजी, यास्मीन को उन्हें मसूरी के बाॅर्डिंग स्कूल भेजने जाते हैं। पर जब वह लोग सुनसान जंगली वीराने से गुजरते है, कार का इंजिन गर्म पड़ जाता है और बंद होता है। अपने अंकल की बात मानते हुए छोटी यास्मीन कार पर ठहर इंतजार करती है और वह रेडियेटर के लिए पानी लेने चल पड़ते हैं। मगर तभी, वह तांत्रिक बाबा झाड़ियों की ओट से बाहर आकर, बच्ची को सम्मोहित करता है, और उसकी फ्राॅक का टुकड़ा और बालों की लट से एक गुड़िया बनाता है। फिर उस गुड़िया को काँच की बोतल को उस डायन की कब्र तक पहुँचाता है। वहीं कार में मौजूद यास्मीन भी सम्मोहन के प्रभाव में उस मंदिर की ओर चले जाती है। इस दरम्यान,
तांत्रिक वापिस यास्मीन को लेकर उसके पिता ठाकुर
यास्मीन की अस्वाभाविक व्यवहार को भांप लेती है। बच्ची के व्यवहार में आए बदलाव को लेकर उसकी चाची होने के नाते वह अपने भाईसुर से उनकी बेटी में हुए अनोखे परिवर्तन के बारे में बताती है और यास्मीन ईलाज के लिए किसी झाड़-फूँक वाले या डाॅक्टर की सेवा लेने को मनाती है। हालाँकि, वह डायन, जो बच्ची में धर कर चुकी थी, इन बातों को सुन लेती है और देर रात को अपनी चाची प्रीति को यास्मीन के कमरे की छतवाले पंखे पर लटका कर मार देती है। महेंद्र प्रताप ठाकुर, इस घटना से दहल उठते हैं, वे अपनी अनाथ हो चुकी छोटी भतीजी साहिला को, मुंबई उसकी नानी घर भेजने का निश्चय करते हैं ताकि वहां वह सुरक्षित रह सके और इस मनहूस परिस्थितियों से दूर रहे।
12 सालों बाद, बड़े ठाकुर को उनकी भतीजी की तरफ से उसका खत मिलता है। उन्हें यह जानकर बेहद खुशी होती है वह अपने मध्यवर्ती इम्तहान में अव्वल श्रेणी में पास हुई है। वहीं गुजरते समय के साथ, बड़ी होती यास्मीन भी एक बेहद खूबसूरत युवती में बदल जाती है जो ज्यादातर अपने बंद कमरे में रहती और कभी-कभार तो जंगलों में भटकती रहती। उसका स्वभाव बहुत मूडी हो चुका था और अपनी ही दुनिया में खोई रहती, जिसकी वजह से उसके पिता सारा वक्त चिंतित रहते। ठाकुर साब अपनी भतीजी के इम्तहान में सफल होने की बात बाबा को बताते हैं और उनका बड़ा मन है कि वह अपनी गर्मियों की छुट्टियां चंदन नगर में गुजारने को बुलवाए। बाबा दूसरी तरफ अपने दैत्य सरीखे विश्वासी नौकर ज़िम्बारू को उनकी भतीजी, साहिला को अगुवा करने भेजते हैं ताकि वह अपने पैतृक निवास पहुंचने ही ना पाएँ।
और तब ज़िम्बारू, साहिला की कार पर धावा बोलता है और उसके पीछे पड़ जाता है।
== चरित्र ==
== मुख्य कलाकार ==
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