"पुराना मन्दिर (1984 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

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==सन्दर्भ=={{Infobox Film
| name = पुराना मन्दिर
| image =पुराना मन्दिर.jpg
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बीजापुर तक का उनका पहला सफर खतरों से भरा होता है। उनकी कार के पहिए तक पंक्चर हो जाते है, वहीं तब उनकी मुलाकात डायन सी दिखनेवाली औरत मंगली और उसका रहस्यमयी बेटा दुर्जन (सदाशिव अमरापुरकर) से होती है जो पूर्व राजा हरमनसिंह की हवेली के चौकीदार और बावर्ची है। वहीं उसकी दोस्ती एक बेढंगे लकड़हारे सांगा (सतीश शाह) से होती है जिनको गुप्त रूप से विश्वास है कि इस हवेली में खजाना कहीं दफन है।
 
हवेली की दीवारें राजा हरिमनसिंह की तस्वीरों से अटी रहती है; वहीं सुमन को वह तस्वीरें इस तरह सजायी लगती है जैसे वह उनको घूर रही हो; तथा इस भय से ऐसा महसूस होता है जैसे खुद सामरी उनकी निगाहबानी कर रहा हो। वहीं ऐसे कई डरावने घटनाएँ भी होती है (मसलन चरमराते हुए बिस्तर, टाॅर्च व लैंपो का जलना-बुझना और हवाओं का अंजाने में तेज हो जाना) पर किसी तरह आनंद और संजय मिलकर तस्वीर पीछे की दीवार तोड़कर वह संदूक पाते हैं जिसमें सामरी का कटा हुआ सिर रखा है। उन्हें गलतफहमी होती है कि सिर जरूर किसी निडर सिपाही होग, जिसने राजा की अवहेलना कर उसके दण्ड को भुगत रहा है। इस तरह दीवार भरने का ख्याल अगले दिन के लिए छोड़ देता है। दुर्भाग्य से सांगा और दुर्जन यह सारा घटनाक्रम गौर करते हैं। सांगा, जो पहले ही खजाने को देखने के लिए झुका हुआ था, अपने लोभ को दबाता है (जिसे यकीन था कि खजाना संदूक में ही होगा) और उस पर से त्रिशूल हटाता है। सामरी का वह अधमरा सिर उसे जैसे मंत्रमुग्ध करता है कि वह उसकी समाधि तक ले चले। सांगा उस सिर को धड़ से जोड़ने के लिए पुराने मंदिर तक पहुँचता है और इस जुड़ाव की भयानक प्रक्रिया के लिए वह चाकू से अपना हाथ काटकर अपना खून उस सामरी की गर्दन पर गिराता है, सामरी पूरा होता है। पिछले 200 सालों की नफरत पाला हुआ, सामरी अब राजा हरमनसिंह की औलादों का बड़ी क्रुरता से हत्याओं का अंजाम देता है और एक बार फिर वहां की बस्ती में जैसे शैतानी राज का साया पड़ जाता है।
कस्बे के लोगों के पास शैतान की सत्ता स्वीकारने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता। कस्बें के कई निवासियों में जैसे अफवाह और तनाव का माहौल धर जाता है और वहीं आनंद भी सामरी के हाथों भयानक मौत मरता है। अभी वह लोग इस भयानक हमले झेल रहे थे जब तक ठाकुर रणवीर सिंह ना पहुँचे थे। वह उन महान हस्तियों के रिश्तों से सही, मगर उनको भी कोई राह सुझ नहीं था कि इस खून के प्यासे सामरी को कैसे पराजित करें।
 
इस हताशा में, बस्तीवासी मंदिर में शरण पाने को मजबूर होते हैं और सामरी खुद पवित्र जगह पर प्रवेश नहीं कर सकता था। वे लोग भगवान शिव की आरती अराधना करते हैं। वहीं संजय के आने से पहले एक दैवीय मार्गदर्शन मिलता; वह त्रिशूल ही एकमात्र कुंजी है जिससे उस राक्षस को रोका जा सकता है। संजय और सुमन उस त्रिशूल को पाने भागते-दौड़ते हवेली जाते है, सामरी को लड़ने के लिए ललकारा जा सके। पर इन सबसे अंजान, दुर्जन उस त्रिशूल को हवेली के किसी ओर जगह हटा देता है। संजय और सुमन तब हवेली में फँस जाते हैं जब वह रक्तपिपासु सामरी पहले ही शिकार के लिए घात पर बैठा था। आखिरकार इस उथल-पुथल भरे हंगामों के सिलसिले बाद, संजय किसी तरह सामरी को फाँसते हुए ताबुत ले आता है और, फिर हाथों में त्रिशूल लेकर उस राक्षस पर काबू जमाते हुए, उसे गाँव के चौराहे तक घसीटता है (वहीं से उसे पुराने मंदिर ले जाया जाता है)। वहीं पर, आनन-फानन में उसकी चिता तैयार की जाती है और सामरी को जिंदा जलाकर उसे खत्म किया जाता है।
 
कुछ दिनों बाद सुमन और संजय की आपस में शादी होती है और सुमन का परिवार फिर खुशियों से भर जाता है।
 
==भूमिकाएँ==