"सिन्धी भाषा": अवतरणों में अंतर

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== व्याकरण ==
=== सिन्धी शब्द ===
सिंधी के सब शब्द स्वरांत होते हैं। इसकी ध्वनियों में , , ॾ , और , ॿ) अतिरिक्त और विशिष्ट ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में सवर्ण ध्वनियों के साथ ही स्वर तंत्र को नीचा करके काकल को बंद कर देना होता है जिससे द्वित्व का सा प्रभाव मिलता है। ये भेदक [[स्वनग्राम]] है। संस्कृत के त वर्ग + र के साथ मूर्धन्य ध्वनि आ गई है, जैसे पुट्ट, या पुट्टु (पुत्र), मंड (मंत्र), निंड (निंद्रा), डोह (द्रोह)। संस्कृत का संयुक्त व्यंजन और प्राकृत का द्वित्व रूप सिंधी में समान हो गया है किंतु उससे पहले का ह्रस्व स्वर दीर्घ नहीं होता जैसे धातु (हिं.हिन्दी, भात), जिभ (जिह्वा), खट (खट्वा, हिं.हिन्दी, खाट), सुठो (सुष्ठु)। प्राय: ऐसी स्थिति में दीर्घ स्वर भी ह्रस्व हो जाता है, जैसे डिघो (दीर्घ), सिसी (शीर्ष), तिको (तीक्ष्ण)। जैसे सं.संस्कृत दत्त:दत्तः और सुप्त:सुप्तः से दतो, सुतो बनते हैं, ऐसे ही सादृश्य के नियम के अनुसार कृत:कृतः से कीतो, पीत:पीतः से पीतो आदि रूप बन गए हैं यद्यपि मध्यम-त-का लोप हो चुका था। पश्चिमी भारतीय आर्य भाषाओं की तरह सिंधी में भी महाप्राणत्व को संयत करने की प्रवृत्ति है जैसे साडा (सार्ध, हिं.हिन्दी, साढे), कानो (हिं.हिन्दी, खाना), कुलण (हिं.हिन्दी, खुलना), पुचा (सं.संस्कृत, पृच्छा)।
 
=== संज्ञा ===