"सिन्धी भाषा": अवतरणों में अंतर

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=== संज्ञा ===
संज्ञाओं का वितरण इस प्रकार से पाया जाता है -
संज्ञाओं का वितरण इस प्रकार से पाया जाता है - अकारांत संज्ञाएँ सदा स्त्रीलिंग होती है, जैसे खट (खाट), तार, जिभ (जीभ), बाँह, सूँह (शोभा); ओकरांत संज्ञाएँ सहा पुल्लिंग होती हैं, जैसे घोड़ों, कुतो, महिनो (महीना), हफ्तो, दूँहों (धूम); -आ-, इ और - ई में अंत होने वाली संज्ञाएँ बहुधा स्त्रीलिंग हैं, जैसे हवा, गरोला (खोज), मखि राति, दिलि (दिल), दरी (खिड़की), (घोड़ो, बिल्ली-अपवाद रूप से सेठी (सेठ), मिसिरि (मिसर), पखी, हाथी, साँइ और संस्कृत के शब्द राजा, दाता पुल्लिंग हैं; -उ-, -ऊ में अंत होने वाले संज्ञाप्रद प्राय: पुल्लिंग हैं, जैसे किताब, धरु, मुँह, माण्ह (मनुष्य), रहाकू (रहने वाला) -अपवाद है विजु (विद्युत), खंड (खांड), आबरू, गऊ। पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए-इ, -ई, -णि और -आणी प्रत्यय लगाते हैं-कुकुरि (मुर्गी), छोकरि; झिर्की (चिड़िया), बकिरी, कुत्ती; घोबिणी, शीहणि, नोकिर्वाणी, हाथ्याणी। लिंग दो ही हैं-स्त्रीलिंग और पुल्लिंग। वचन भी दो ही हैं-एकवचन और बहुवचन। स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन ऊँकारांत होता है, जैसे जालूँ (स्त्रियाँ), खटूँ (चारपाइयाँ), दवाऊँ (दवाएँ) अख्यूँ (आँखें); पुल्लिंग के बहुरूप में वैविध्य हैं। ओकारांत शब्द आकारांत हो जाते हैं-घोड़ों से घोड़ा, कपड़ों से कपड़ा आदि; उकारांत शब्द अकारांत हो जाते हैं-घरु से घर, वणु (वृक्ष) से वण; इकारांत शब्दों में-ऊँ बढ़ाया जाता है, जैसे सेठ्यूँ। ईकारांत और ऊकारांत शब्द वैसे ही बने रहते हैं।
* अकारांत संज्ञाएँ सदा [[स्त्रीलिंग]] होती है, जैसे खट (खाट), तार, जिभ (जीभ), बाँह, सूँह (शोभा);
 
* ओकरांत संज्ञाएँ सदा [[पुल्लिंग]] होती हैं, जैसे घोड़ो, कुतो, महिनो (महीना), हफ्तो, दूँहो (धूम);
 
* -आ-, इ और - ई में अंत होने वाली संज्ञाएँ बहुधा स्त्रीलिंग हैं, जैसे हवा, गरोला (खोज), मखि राति, दिलि (दिल), दरी (खिड़की), (घोड़ो, बिल्ली-अपवाद रूप से सेठी (सेठ), मिसिरि (मिसर), पखी, हाथी, साँइ और संस्कृत के शब्द राजा, दाता पुल्लिंग हैं;
 
* -उ-, -ऊ में अंत होने वाले संज्ञाप्रद प्राय: पुल्लिंग हैं, जैसे किताब, धरु, मुँह, माण्ह (मनुष्य), रहाकू (रहने वाला) -अपवाद है, विजु (विद्युत), खंड (खांड), आबरू, गऊ।
 
* पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए -इ, -ई, -णि और -आणी प्रत्यय लगाते हैं -कुकुरि (मुर्गी), छोकरि; झिर्की (चिड़िया), बकिरी, कुत्ती; घोबिणी, शीहणि, नोकिर्वाणी, हाथ्याणी।
 
लिंग दो ही हैं-स्त्रीलिंग और पुल्लिंग। वचन भी दो ही हैं-एकवचन और बहुवचन। स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन ऊँकारांत होता है, जैसे जालूँ (स्त्रियाँ), खटूँ (चारपाइयाँ), दवाऊँ (दवाएँ) अख्यूँ (आँखें); पुल्लिंग के बहुरूप में वैविध्य हैं। ओकारांत शब्द आकारांत हो जाते हैं-घोड़ों से घोड़ा, कपड़ों से कपड़ा आदि; उकारांत शब्द अकारांत हो जाते हैं-घरु से घर, वणु (वृक्ष) से वण; इकारांत शब्दों में-ऊँ बढ़ाया जाता है, जैसे सेठ्यूँ। ईकारांत और ऊकारांत शब्द वैसे ही बने रहते हैं।
 
=== संज्ञाओं के कारक ===