"भारतीय दण्ड संहिता": अवतरणों में अंतर

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| उद्देशिका
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* '''धारा १''' संहिता का नाम और उसके प्रर्वतन का विस्तार
* '''धारा २''' भारत के भीतर किए गये अपराधों का दण्ड
* '''धारा ३''' भारत से परे किए गये किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड
* '''धारा ४''' राज्य-क्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार
* '''धारा ५''' कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना
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| अध्याय २
| साधारण स्पष्टीकरण
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* '''धारा ६''' संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना
* '''धारा ७''' एक बार स्पष्टीकृत पद का भाव
* '''धारा ८''' लिंग
* '''धारा ९''' वचन
* '''धारा १०''' पुरूष, स्त्री
* '''धारा ११''' व्यक्ति
* '''धारा १२''' लोक
* '''धारा १३''' निरसित
* '''धारा १४''' सरकार का सेवक
* '''धारा १५''' निरसित
* '''धारा १६''' निरसित
* '''धारा १७''' सरकार
* '''धारा १८''' भारत
* '''धारा १९''' न्यायाधीश
* '''धारा २०''' न्यायालय
* '''धारा २१''' लोक सेवक
* '''धारा २२''' जंगम सम्पत्ति
* '''धारा २३''' सदोष अभिलाभ
* सदोष अभिलाभ
* सदोष हानि
* सदोष अभिलाभ प्राप्त करना/सदोष हानि उठाना
* '''धारा २४''' बेईमानी से
* '''धारा २५''' कपटपूर्वक
* '''धारा २६''' विश्वास करने का कारण
* '''धारा २७''' पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में सम्पत्ति
* '''धारा २८''' कूटकरण
* '''धारा २९''' दस्तावेज
* '''धारा २९''' क इलेक्ट्रानिक अभिलेख
* '''धारा ३०''' मूल्यवान प्रतिभूति
* '''धारा ३१''' विल
* '''धारा ३२''' कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों के अन्तर्गत अवैध लोप आता है
* '''धारा ३३''' कार्य, लोप
* '''धारा ३४''' सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किये गये कार्य
* '''धारा ३५''' जब कि ऐसा कार्य इस कारण अपराधित है कि वह अपराध्कि ज्ञान या आशय से किया गया है
* '''धारा ३६''' अंशत: कार्य द्वारा और अंशत: लोप द्वारा कारित परिणाम
* आशय से किया गया है
* '''धारा ३७''' किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एक को करके सहयोग करना
* धारा ३६ अंशत: कार्य द्वारा और अंशत: लोप द्वारा कारित परिणाम
* '''धारा ३८''' अपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे
* धारा ३७ किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एक
* '''धारा ३९''' स्वेच्छया
* को करके सहयोग करना
* '''धारा ४०''' अपराध
* धारा ३८ अपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे
* '''धारा ३९४१''' स्वेच्छयाविशेष विधि
* '''धारा ४०४२''' अपराधस्थानीय विधि
* '''धारा ४३''' अवैध, करने के लिये वैध रूप से आबद्ध
* धारा ४१ विशेष विधि
* '''धारा ४२४४''' स्थानीय विधिक्षति
* '''धारा ४५''' जीवन
* धारा ४३ अवैध, करने के लिये वैध रूप से आबद्ध
* '''धारा ४४४६''' क्षतिमृत्यु
* '''धारा ४५४७''' जीवनजीव जन्तु
* '''धारा ४६४८''' मृत्युजलयान
* '''धारा ४७४९''' जीववर्ष, जन्तुमास
* '''धारा ४८५०''' जलयानधारा
* '''धारा ४९५१''' वर्ष, मासशपथ
* '''धारा ५०५२''' धारासद्भावनापूर्वक
* '''धारा ५१५२''' शपथक संश्रय
* धारा ५२ सद्भावनापूर्वक
* धारा ५२ क संश्रय
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| अध्याय ३
| दण्डों के विषय में
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* '''धारा ५३''' दण्ड
* '''धारा ५३''' क निर्वसन के प्रति निर्देश का अर्थ लगाना
* '''धारा ५४''' लघु दण्डादेश का लघुकरण
* '''धारा ५५''' आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरण
* '''धारा ५५''' क समुचित सरकार की परिभाषा
* '''धारा ५६''' निरसित
* '''धारा ५७''' दण्डावधियों की भिन्ने
* '''धारा ५८''' निरसित
* '''धारा ५९''' निरसित
* '''धारा ६०''' दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में संपूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा
* '''धारा ६१''' निरसित
* '''धारा ६२''' निरसित
* '''धारा ६३''' जुर्माने की रकम
* '''धारा ६४''' जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश
* '''धारा ६५''' जबकि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किये जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो
* '''धारा ६६''' जुर्माना न देने पर किस भंति का कारावास दिया जाय
* '''धारा ६७''' जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो
* '''धारा ६८''' जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जाना
* '''धारा ६९''' जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिये जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान
* '''धारा ७०''' जुर्माने का छ: वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उदग्रहणीय होना
* '''धारा ७१''' कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिये दण्ड की अवधि
* '''धारा ७२''' कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिये दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है
* '''धारा ७३''' एकांत परिरोध
* '''धारा ७४''' एकांत परिरोध की अवधि
* '''धारा ७५''' पूर्व दोषसिदि्ध के पश्च्यात अध्याय १२ या अध्याय १७ के अधीन कतिपय अपराधें के लिये वर्धित दण्ड
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| अध्याय ४
| साधारण अपवाद
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* '''धारा ७६''' विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य
* '''धारा ७७''' न्यायिकत: कार्य करने हेतु न्यायाधीश का कार्य
* '''धारा ७८''' न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य
* '''धारा ७९''' विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य
* '''धारा ८०''' विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना
* '''धारा ८१''' कार्य जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिये किया गया है
* '''धारा ८२''' सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य
* '''धारा ८३''' सात वर्ष से उपर किन्तु बारह वर्ष से कम आयु अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य
* '''धारा ८४''' विकृतिचित्त व्यक्ति का कार्य
* '''धारा ८५''' ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरूद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है
* '''धारा ८६''' किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है
* '''धारा ८७''' सम्मति से किया गया कार्य जिसमें मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय हो और न उसकी सम्भव्यता का ज्ञान हो
* '''धारा ८८''' किसी व्यक्ति के फायदे के लिये सम्मति से सदभवनापूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है धारा ८९ संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिये सदभवनापूर्वक किया गया कार्य
* '''धारा ९०''' सम्मति
** उन्मत्त व्यक्ति की सम्मति
** शिशु की सम्मति
* '''धारा ९१''' एसे कार्यों का अपवर्णन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वत: अपराध है
* '''धारा ९२''' सम्मति के बिना किसी ब्यक्ति के फायदे के लिये सदभावना पूर्वक किया गया कार्य
* '''धारा ९३''' सदभावनापूर्वक दी गयी संसूचना
* '''धारा ९४''' वह कार्य जिसको करने के लिये कोई ब्यक्ति धमकियों द्धारा विवश किया गया है
* '''धारा ९५''' तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य
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| निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में
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* धारा९६'''धारा ९६''' निजी प्रतिरक्षा में दी गयी बातें
* धारा९७'''धारा ९७''' शरीर तथा सम्पत्ति पर निजी प्रतिरक्षा का अधिकार
* धारा९८'''धारा ९८''' ऐसे ब्यक्ति का कार्य के विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतख्त्ति आदि हो
* धारा९९'''धारा ९९''' कार्य, जिनके विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है इस अधिकार के प्रयोग का विस्तार
* धारा१००'''धारा १००''' शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है
* धारा१०१'''धारा १०१''' कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है
* धारा१०२'''धारा १०२''' शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना
* धारा१०३'''धारा १०३''' कब सम्पत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता है
* धारा१०४'''धारा १०४''' ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है
* धारा१०५'''धारा १०५''' सम्पत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना
* धारा१०६'''धारा १०६''' घातक हमले के विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा के अधिकार जबकि निर्दोश व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है
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| अध्याय ५
| दुष्प्रेरण के विषय में
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* धारा१०७'''धारा १०७''' किसी बात का दुष्प्रेरण
* धारा१०८'''धारा १०८''' दुष्प्रेरक
* धारा१०८'''धारा १०८''' क भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण
* धारा१०९'''धारा १०९''' दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए और जहां तक कि उसके दण्ड के लिये कोई अभिव्यक्त उपबंध नही है
* धारा११०'''धारा ११०''' दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है
* धारा१११'''धारा १११''' दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है
* धारा११२'''धारा ११२''' दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिये और किये गये कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है
* धारा११३'''धारा ११३''' दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक दवारा आशयित से भिन्न हो
* धारा११४'''धारा ११४''' अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति
* धारा११५'''धारा ११५''' मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण यदि अपराध नही किया जाता यदि अपहानि करने वाला कार्य परिणामस्वरूप किया जाता है
* धारा११६'''धारा ११६''' कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण अदि अपराध न किया जाए यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो
* धारा११७'''धारा ११७''' लोक साधारण दवारा या दस से अधिक व्यक्तियों दवारा अपराध किये जाने का दुष्प्रेरण
* धारा११८'''धारा ११८''' मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाए
* धारा११९'''धारा ११९''' किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक सेवक दवारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है
** यदि अपराध कर दिया जाय
** यदि अपराध मृत्यु, आदि से दण्डनीय है
** यदि अपराध नही किया जाय
* धारा१२०'''धारा १२०''' कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना
** यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नही किया जाए
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| आपराधिक षडयंत्र
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* धारा१२०'''धारा १२०''' क आपराधिक षडयंत्र की परिभाषा
* धारा१२०'''धारा १२०''' ख आपराधिक षडयंत्र का दण्ड
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| अध्याय ६
| राज्य के विरूद्ध अपराधें के विषय में
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* धारा१२१'''धारा १२१''' भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना
* धारा१२१'''धारा १२१''' क धारा १२१ दवारा दण्डनीय अपराधों को करने का षडयंत्र
* धारा१२२'''धारा १२२''' भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना
* धारा१२३'''धारा १२३''' युद्ध करने की परिकल्पना को सुनकर बनाने के आशय से छुपाना
* '''धारा १२४''' किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोपित करने के आशय से राट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना
* धारा१२४'''धारा १२४''' क राजद्रोह
* धारा१२५'''धारा १२५''' भारत सरकार से मैत्री सम्बंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति के विरूद्ध युद्ध करना
* धारा१२६'''धारा १२६''' भारत सरकार के साथ शान्ति का संबंध रखने वाली शक्ति के राज्य क्षेत्र में लूटपाट करना
* धारा१२७'''धारा १२७''' धारा १२५ व १२६ में वर्णित युद्ध या लूटपाट दवारा ली गयी सम्पत्ति प्राप्त करना
* धारा१२८'''धारा १२८''' लोक सेवक का स्व ईच्छा राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना
* धारा१२९'''धारा १२९''' उपेक्षा से लोक सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करना
* धारा१३०'''धारा १३०''' ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुडाना या संश्रय देना
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| अध्याय ७
| सेना, नौसेना और वायुसेना से सम्बन्धित अपराधें के विषय में
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* धारा१३१'''धारा १३१''' विद्रोह का दुष्प्रेरण का किसी सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना
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