"हरतालिका व्रत": अवतरणों में अंतर
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सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता [[पार्वती]] ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।
==व्रत की अनिवार्यता ==
इस व्रत की पात्र कुमारी कन्यायें या सुहागिन महिलाएं दोनों ही हैं परन्तु एक बार व्रत रखने बाद जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है. यदि व्रती महिला गंभीर रोगी हालात में हो तो उसके वदले में दूसरी महिला या उसका पति भी इस व्रत को रख सकने का विधान है।
== व्रत का समापन ==
इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए।
==सन्दर्भ==
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