"जगदीशचंद्र माथुर": अवतरणों में अंतर

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'''जगदीशचंद्र माथुर''' (जन्म [[१६ जुलाई]], [[१९१७]]) [[हिंदी]] के उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने [[आकाशवाणी]] में काम करते हुए हिन्दी की लोकप्रयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। रंगमंच के निर्माण, निर्देशन, अभिनय, संकेत आदि के सम्बन्ध में आपको विशेष सफलता मिली है।<ref>{{cite book |last= |first=कृष्णचन्द्र |title= समय दर्पण|year=मार्च २००० |publisher=श्रीमाली प्रकाशन |location=कोलकाता |id= |page=८६-८७ |accessday= १७|accessmonth= सितंबर|accessyear= २००९}}</ref>
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'''जगदीशचंद्र माथुर''' (जन्म [[१६ जुलाई]], [[१९१७]]) [[हिंदी]] के उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने [[आकाशवाणी]] में काम करते हुए हिन्दी की लोकप्रयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण के ऐसे ऐतिहासिक समय में जगदीशचंद्र माथुर, आईसीएस, ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने ही 'एआईआर' का नामकरण [[आकाशवाणी]] किया था। टेलीविज़न उन्हीं के जमाने में वर्ष [[१९५९]] में शुरू हुआ था। हिंदी और भारतीय भाषाओं के तमाम बड़े लेखकों को वे ही [[रेडियो]] में लेकर आए थे। [[सुमित्रानंदन पंत]] से लेकर [[दिनकर]] और [[बालकृष्ण शर्मा]] नवीन जैसे दिग्गज साहित्यकारों के साथ उन्होंने हिंदी के माध्यम से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूचना संचार तंत्र विकसित और स्थापित किया था।<ref>{{cite web |url= http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2006/07/060719_column_kamleshwar.shtml|title= सूचना संचार क्राँति के जनक माथुर साहब|accessmonthday=[[17 अक्तूबर]]|accessyear=[[2007]]|format= एसएचटीएमएल|publisher= बीबीसी|language=}}</ref>
 
'''जगदीशचंद्र माथुर''' (जन्म [[१६ जुलाई]], [[१९१७]]) [[हिंदी]] के उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने [[आकाशवाणी]] में काम करते हुए हिन्दी की लोकप्रयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण के ऐसे ऐतिहासिक समय में जगदीशचंद्र माथुर, आईसीएस, [[ऑल इंडिया रेडियो]] के डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने ही 'एआईआर' का नामकरण [[आकाशवाणी]] किया था। टेलीविज़न उन्हीं के जमाने में वर्ष [[१९५९]] में शुरू हुआ था। हिंदी और भारतीय भाषाओं के तमाम बड़े लेखकों को वे ही [[रेडियो]] में लेकर आए थे। [[सुमित्रानंदन पंत]] से लेकर [[दिनकर]] और [[बालकृष्ण शर्मा]] नवीन जैसे दिग्गज साहित्यकारों के साथ उन्होंने हिंदी के माध्यम से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूचना संचार तंत्र विकसित और स्थापित किया था।<ref>{{cite web |url= http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2006/07/060719_column_kamleshwar.shtml|title= सूचना संचार क्राँति के जनक माथुर साहब|accessmonthday=[[17 अक्तूबर]]|accessyear=[[2007]]|format= एसएचटीएमएल|publisher= बीबीसी|language=}}</ref>
== जीवन परिचय ==
जन्म 1917 ई. खुर्जा जिला [[बुलन्दशहर जिला|बुलंदशहर]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ।
 
== जीवन परिचय ==
इनका जन्म [[१६ जुलाई]] [[१९१७]] को [[उत्तर प्रदेश]] के [[बुलन्दशहर जिला|बुलंदशह जिले]] के [[खुर्जा]] में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा [[खुर्जा]] में हुई। उच्च शिक्षा युइंग [[क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद|क्रिश्चियन कॉलेज]], [[इलाहाबाद]] और [[प्रयाग विश्वविद्यालय]] में हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय का शैक्षिक वातावरण औऱऔर प्रयाग के साहित्यिक संस्कार रचनाकार के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका हैं। 1939 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. (अंग्रेज़ी) करने के बाद 1941 ई. में 'इंडियन सिविल सर्विस' में चुन लिए गए।
 
सरकारी नौकरी में 6 वर्ष बिहार शासन के शिक्षा सचिव के रूप में, 1955 से 1962 ई. तक आकाशवाणी - भारत सरकार के महासंचालक के रूप में, [[1963]] से [[1964]] ई. तक उत्तर बिहार (तिरहुत) के कमिश्नर के रूप में कार्य करने के बाद 1963-64 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका में विज़िटिंग फेलो नियुक्त होकर विदेश चले गए। वहाँ से लौटने के बाद विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हुए 19 दिसम्बर 1971 ई. से भारत सरकार के हिंदी सलाहकार रहे। इन सरकारी नौकरियों में व्यस्त रहते हुए भी भारतीय इतिहास और संस्कृति को वर्तमान संदर्भ में व्याख्यायित करने का प्रयास चलता ही रहा।
 
== साहित्यिक जीवन ==
अध्ययनकाल से ही उनका लेखन प्रारंभ होता है। आरम्भ से ही आपकी रूचि अभिनय की ओर थी। प्रयाग विश्वविद्यालय में अपने क्षात्र जीवन में आपने विश्वविद्यालय के नाटकों में बार-बार हिस्सा लिया। [[1930]] ई. में तीन छोटे नाटकों के माध्यम से वे अपनी सृजनशीलता की धारा के प्रति उन्मुख हुए। प्रयाग में उनके नाटक 'चाँद', 'रुपाभ' पत्रिकाओं में न केवल छपे ही, बल्कि इन्होंने 'वीर अभिमन्यु', आदि नाटकों में भाग लिया। 'भोर का तारा' में संग्रहीत सारी रचनाएँ प्रयाग में ही लिखी गईं। यह नाम प्रतीक रूप में शिल्प और संवेदना दोनों दृष्टियों से माथुर के रचनात्मक व्यक्तित्व के 'भोर का तारा' ही है। इसके बाद की रचनाओं में समकालीनता और परंपरा के प्रति गहराई क्रमशः बढ़ती गई है। व्यक्तियों, घटनाओं और देशके विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों से प्राप्त अनुभवों ने सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
 
आपके एकांकी जीवन की यथार्थ संवेदना को चित्रित करते हैं। व्यापक परिवतर्नों का प्रभाव मध्यवर्ग पर ज्यादा पड़ता है। आपके पात्र अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व और चारित्रिक विशेषताएँ रखते हैं। इन विशेषताओं को अंकित करने में आपको पूरी सफलता प्राप्त हुई है। आपकी शैली मँजी हुई है। कथोपकथन सुगठित और सजीव हैं। कथोपकथनों के माध्यम से आप पात्रों की मानसिकता को व्यक्त करते हैं। कथोपकथन वातावरण के अनुकूल होते हैं। भोर का तारा, ओ मेरे सपने, आपके प्रसिद्ध एकांकी हैं।
 
== प्रमुख कृतियाँ ==
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== समालोचना ==
 
माथुर जी के नाटकों में कौतूहल और स्वच्छंद प्रेमाकुलता है। 'भोर का तारा' में कवि शेखर की भावुकता पर्यावरण में घटित करने या रचने का मोह भी प्रारंभ से मिलता है। परंतु समसामयिक को अनुभव के रूप में अनुभूत करके उसकी प्रामाणिकता को संस्कृति के माध्यम से सिद्ध करने का जो आग्रह उनके नाटकों में हैं उसकी रचनात्मक संभावना का प्रमाण 'कोणार्क' में है। परंपरा को माध्यम और संदर्भ के रूप में प्रयोग करने की कला में माथुर सिद्दहस्त हैं। परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि यही उनका सब कुछ है, बल्कि उन्होंने रीढ़ की हड्डी आदि ऐसे नाटक भी लिखे जिनका संबंध समाज के भीतर के बदलते रिश्तों और मानवीय संबंधों से है। 'शारदीया' के सारे नाटकों में समस्या को व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने का आभास अवश्य है, परंतु समस्या मात्र का परिवृत्त इतना छोटा है कि वह किसी व्यापक सत्य का आधार नहीं बन पाती। वस्तुतः माथुर छायावादी संवेदना के रचनाकार हैं। यह संवेदना 'भोर का तारा' से लेकर 'पहला राजा' तक में कमोबेश मिलती है। यह अवश्य है कि यह छायावादिता नाटक के विधागक संस्कार और यथार्थ के प्रति गहरी संसक्ति के कारण 'कोणार्क' और 'पहला राजा' में काफ़ी संस्कारित हुई है।
 
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== संदर्भ ==
<references/>
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{{हिंदी साहित्यकार}}