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==== शिया इस्लाम ====
{{main| शिया }}
मुहम्मद साहब की मृत्यु के उपरांत उनके वारिस को [[ख़लीफा]] कहा जाता था जो इस्लाम का प्रमुख माना जाता था। चौथे खलीफा अली, मुहम्मद साहब के फरीक थे और उनकी पुत्री फ़ातिमा के पति। पर उनके खिलाफत को चुनौती दी गई और विद्रोह भी हुए। सन् ६६१ में अली की हत्या कर दी गई। इसके बाद उम्मयदों का प्रभुत्व इस्लाम पर हो गया। सन् ६८० में [[करबला]] में अली के दूसरे पुत्र हुसैन ने उम्मयदों के खिलाफ़ बगावत की पर उनको एक युद्ध में मार दिया गया। इसी दिन की याद में शिया मुसलमान महुर्रम मनाते हैं। इस समय तक इस्लाम दो खेमे में बट गया था - उम्मयदों का खेमा और अली का खेमा। जो उम्मयदों को इस्लाम के वास्तविक उत्तराधिकारी समझते थे वे सुन्नीशिया कहलाए और जो अली को वास्तविक खलीफा (वारिस) मानते थे वे शिया।सुन्नी| सन् ७४० में उम्मयदों को तुर्कों से मुँह की खानी पड़ी। उसी साल एक फारसी परिवर्तित - अबू मुस्लिम - ने उम्मयदों के खिलाफ़ मुहम्मद साहब के वंश के नाम पर उम्मयदों के खिलाफ एक बड़ा जनमानस तैयार किया। उन्होंने सन् ७४९-५० के बीच उम्मयदों को हरा दिया और एक नया खलीफ़ा घोषित किया - अबुल अब्बास। अबुल अब्बास अली और हुसैन का वंशज तो नही पर मुहम्मद साहब के एक और फरीक का वंशज था। उससे अबु मुस्लिम की बढ़ती लोकप्रियता देखी नहीं गई और उसको ७५५ इस्वी में फाँसी पर लटका दिया। इस घटना को शिया इस्लाम में एक महत्त्वपूर्ण दिन माना जाता है क्योंकि एक बार फिर अली के समर्थकों को हाशिये पर ला खड़ा किया गया था। अबुल अब्बास के वंशजों ने कई सदियों तक राज किया। उसका वंश [[अब्बासी वंश]] (अब्बासिद) कहलाया और उन्होंने अपनी राजधानी [[बगदाद]] में स्थापित की। उनका शासन अरब और पश्चिम एशियाई सेना तथा फ़ारसी साहित्य के प्रभाव के सम्मिलमन से बना। अरबी भाषा में विज्ञान, चिकित्सा तथा ज्योतिष के कई अविस्मरणीय योगदान ईरानियों ने मुख्यतः अरबी भाषा में किया। दसवीं सदी में पश्चिम एशिया के ईरानी मूल के बुवाई शासकों ने बग़दाद पर आक्रमण कर उसे हरा दिया और इस तरह अब्बसी ख़िलाफ़त की श्रेष्ठता पर विराम लगा दिया।
 
==== छोटे साम्राज्यों और विदेशी आक्रमण का काल ====
[[चित्र:Iran circa 1000AD.png|thumb|right|400px|सन् 1000 के आसपास का ईरान]]