"चण्डी चरित्र": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति 37:
ਜਬ ਆਵ ਕੀ ਅਉਧ ਨਿਦਾਨ ਬਨੈ ਅਤਿ ਹੀ ਰਨ ਮੈ ਤਬ ਜੂਝ ਮਰੋਂ ॥੨੩੧॥ }}[http://www.sridasam.org/dasam?Action=Page&p=240&english=t&id=72824]<br />
देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं
:न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं,
:अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों, :जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥२३१॥ भाल निपट विशाल शशिमृग मीन खंजन लोचनी,▼
भाल बदन विशाल कोमल सकल विध्न विमोचनी।▼
सिंह वाहिनी धनुष धारिणी कनक सेवत सोहिनी,▼
रूण्ड माल अरोल राजत् मुनिन के मन मोहिनी।▼
एक रूप अनेक तेरो मैया गुणन की गिनती नहीं,▼
कछु ज्ञान अतः ही सुजान भक्तन भाव से विनती करी।▼
वर वेष अनूड़ा खड़ग खप्पर अभय अंकुश धारिणी,▼
कर काज लाज जहाज जननी जनन के हित कारिणी।▼
मंद हास प्रकाश चहूं दिस विंध्य वासिनी गाईये,▼
क्रोध तज अभिमान परिहर दुष्ट बुद्धि नसाईये।▼
उठत बैठत चलत सोवत बार बार मनाईये,▼
चण्ड मुण्ड विनाशिनी जी के चरण हित चित्त लाईये।▼
चंद्र फल और वृंद होते अधिक आनंद रूप हैं,▼
सर्व सुख दाता विधाता दर्श पर्श अनूप हैं।▼
तू योग भोग विलासिनी शिव पार्श्व हिम गिरी नंदिनी,▼
दुरत तुरत निवारिणी जग तारिणी अद्य खंजिनी।▼
आदि माया ललित काया प्रथम मधु कैटभ छ्ले,▼
त्रिभुवन भार उतारवे को महा महिषासुर मले।▼
इंद्र चंद्र कुबेर वरूणो सुरन के आनंद भये,▼
भुवन चौदह मैया दश दिशन में सुनत ही सब दुख गये।▼
धूम्रलोचन भस्म कीनो मैया क्रोध के ‘हुँ’कार सों,▼
हनी है सेना मैया सकल ताकी सिंह के भभकार सों।▼
चण्ड मुण्ड प्रचण्ड दोऊ मैया प्रवल से अति भ्रष्ट हैं,▼
मुण्ड जिनके किए खण्डन असुर मण्डल दुष्ट हैं।▼
रक्तबीज असुर अधर्मी आयो हैं दल जोड़ के,▼
शोर कर मरवे को धायो कियो रण घनघोर से।▼
जय जय भवानी युक्ति ठानी सर्व शक्ति बुलाईके,▼
महा शुम्भ निशुम्भ योद्धा हन्यो खड़ग् बजाईके।▼
परस्पर जब युद्ध माच्यो दिवस सों रजनी भई,▼
दास कारण असुर मारे मैया पुष्प घन वर्षा भई।▼
चित्त लाई चंडी चरित्र पढ़त और सुनत जो निसदिन सदा,▼
पुत्र मित्र कलात्र सुख सों दुख न आवे डिग कदा।▼
भुक्ति मुक्ति सुबुद्धि बहुधन धान्य सुख संपत्त लिए,▼
शत्रु नाश प्रकाश दुनिया आनंद मंगल जन्म लहें▼
:भाल निपट विशाल शशिमृग मीन खंजन लोचनी,
:भाल बदन विशाल कोमल सकल विध्न विमोचनी।
:सिंह वाहिनी धनुष धारिणी कनक सेवत सोहिनी,
:रूण्ड माल अरोल राजत् मुनिन के मन मोहिनी।
:एक रूप अनेक तेरो मैया गुणन की गिनती नहीं,
:कछु ज्ञान अतः ही सुजान भक्तन भाव से विनती करी।
:वर वेष अनूड़ा खड़ग खप्पर अभय अंकुश धारिणी,
:कर काज लाज जहाज जननी जनन के हित कारिणी।
:मंद हास प्रकाश चहूं दिस विंध्य वासिनी गाईये,
:क्रोध तज अभिमान परिहर दुष्ट बुद्धि नसाईये।
:उठत बैठत चलत सोवत बार बार मनाईये,
:चण्ड मुण्ड विनाशिनी जी के चरण हित चित्त लाईये।
:चंद्र फल और वृंद होते अधिक आनंद रूप हैं,
:सर्व सुख दाता विधाता दर्श पर्श अनूप हैं।
:तू योग भोग विलासिनी शिव पार्श्व हिम गिरी नंदिनी,
:दुरत तुरत निवारिणी जग तारिणी अद्य खंजिनी।
:आदि माया ललित काया प्रथम मधु कैटभ छ्ले,
:त्रिभुवन भार उतारवे को महा महिषासुर मले।
:इंद्र चंद्र कुबेर वरूणो सुरन के आनंद भये,
:भुवन चौदह मैया दश दिशन में सुनत ही सब दुख गये।
:धूम्रलोचन भस्म कीनो मैया क्रोध के ‘हुँ’कार सों,
:हनी है सेना मैया सकल ताकी सिंह के भभकार सों।
:चण्ड मुण्ड प्रचण्ड दोऊ मैया प्रवल से अति भ्रष्ट हैं,
:मुण्ड जिनके किए खण्डन असुर मण्डल दुष्ट हैं।
:रक्तबीज असुर अधर्मी आयो हैं दल जोड़ के,
:शोर कर मरवे को धायो कियो रण घनघोर से।
:जय जय भवानी युक्ति ठानी सर्व शक्ति बुलाईके,
:महा शुम्भ निशुम्भ योद्धा हन्यो खड़ग् बजाईके।
:परस्पर जब युद्ध माच्यो दिवस सों रजनी भई,
:दास कारण असुर मारे मैया पुष्प घन वर्षा भई।
:चित्त लाई चंडी चरित्र पढ़त और सुनत जो निसदिन सदा,
:पुत्र मित्र कलात्र सुख सों दुख न आवे डिग कदा।
:भुक्ति मुक्ति सुबुद्धि बहुधन धान्य सुख संपत्त लिए,
:शत्रु नाश प्रकाश दुनिया आनंद मंगल जन्म लहें
▲:भाल निपट विशाल शशिमृग मीन खंजन लोचनी,
▲:भाल बदन विशाल कोमल सकल विध्न विमोचनी।
▲:सिंह वाहिनी धनुष धारिणी कनक सेवत सोहिनी,
▲:रूण्ड माल अरोल राजत् मुनिन के मन मोहिनी।
▲:एक रूप अनेक तेरो मैया गुणन की गिनती नहीं,
▲:कछु ज्ञान अतः ही सुजान भक्तन भाव से विनती करी।
▲:वर वेष अनूड़ा खड़ग खप्पर अभय अंकुश धारिणी,
▲:कर काज लाज जहाज जननी जनन के हित कारिणी।
▲:मंद हास प्रकाश चहूं दिस विंध्य वासिनी गाईये,
▲:क्रोध तज अभिमान परिहर दुष्ट बुद्धि नसाईये।
▲:उठत बैठत चलत सोवत बार बार मनाईये,
▲:चण्ड मुण्ड विनाशिनी जी के चरण हित चित्त लाईये।
▲:चंद्र फल और वृंद होते अधिक आनंद रूप हैं,
▲:सर्व सुख दाता विधाता दर्श पर्श अनूप हैं।
▲:तू योग भोग विलासिनी शिव पार्श्व हिम गिरी नंदिनी,
▲:दुरत तुरत निवारिणी जग तारिणी अद्य खंजिनी।
▲:आदि माया ललित काया प्रथम मधु कैटभ छ्ले,
▲:त्रिभुवन भार उतारवे को महा महिषासुर मले।
▲:इंद्र चंद्र कुबेर वरूणो सुरन के आनंद भये,
▲:भुवन चौदह मैया दश दिशन में सुनत ही सब दुख गये।
▲:धूम्रलोचन भस्म कीनो मैया क्रोध के ‘हुँ’कार सों,
▲:हनी है सेना मैया सकल ताकी सिंह के भभकार सों।
▲:चण्ड मुण्ड प्रचण्ड दोऊ मैया प्रवल से अति भ्रष्ट हैं,
▲:मुण्ड जिनके किए खण्डन असुर मण्डल दुष्ट हैं।
▲:रक्तबीज असुर अधर्मी आयो हैं दल जोड़ के,
▲:शोर कर मरवे को धायो कियो रण घनघोर से।
▲:जय जय भवानी युक्ति ठानी सर्व शक्ति बुलाईके,
▲:महा शुम्भ निशुम्भ योद्धा हन्यो खड़ग् बजाईके।
▲:परस्पर जब युद्ध माच्यो दिवस सों रजनी भई,
▲:दास कारण असुर मारे मैया पुष्प घन वर्षा भई।
▲:चित्त लाई चंडी चरित्र पढ़त और सुनत जो निसदिन सदा,
▲:पुत्र मित्र कलात्र सुख सों दुख न आवे डिग कदा।
▲:भुक्ति मुक्ति सुबुद्धि बहुधन धान्य सुख संपत्त लिए,
▲:शत्रु नाश प्रकाश दुनिया आनंद मंगल जन्म लहें
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