"अफगानिस्तान में हिन्दू धर्म": अवतरणों में अंतर
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=== काबुल शाही और झूनबिल राजवंश ===
[[चित्र:Kabul_ganesh_khingle.jpg|अंगूठाकार|310x310पिक्सेल|पाँचवी शताब्दी में मारबल की गणेश मूर्ति अफगानिस्थान के [[गरदेज़|गरदेज]] से प्राप्त हुई थी। अभी वो मूर्ति काबुल के दरगाह पीर रतन नाथ में है। शिलालेखों के अनुसार इस "महागणेश की उत्कृष्ट और सुन्दर मूर्ति" को हेफथलाइट् (Hephthalite) वंश के शासक खिंगल ने स्थापित की थी।]]
653-4 AD में अब्दुल् रहमान् बिन् समारा ने 6,000 अरबी मुस्लिम के साथ झूनबिल-वंशीयों की सीमा को पदाक्रान्त किया और झमिनदवार में स्थित झून मन्दिर (सूर्य मन्दिर) पर्यन्त पहुंच गये। अफगानिस्थान में स्थित आज के [[हेलमन्द प्रान्त]] जो प्राचीन काल में मुसा कुला (आज एक मुसा कुला नगर भी है वहां।) नाम से प्रसिद्ध था, उससे तीन माइल् दूर झमिनदवार था ऐसा माना जाता है। अरब सेना के सेनापति ने उस मन्दिर की "सूर्य मूर्ति के हाथ खण्डित कर दिये और मूर्ति की आँखों में स्थित [[कुरुविंद|कुरुविन्द]] (ruby) को नीकाल दिया। सिस्तान के मर्झबान् के भगवान् की अनुपयोगिता को सिद्ध करने के लिये ऐसा किया गया था"।<ref>André Wink, "Al-Hind: The Making of the Indo-Islamic World", Brill 1990. p 120</ref>
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