"राजिम कुंभ": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Rajim Kumbh Mela 2016.jpg|अंगूठाकार|राजिम कुंभ मे एक साधू का चित्र। विभूती लगाकर पूजा के लिये तय्यार होते हुए साधू।]]
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राजिम कुम्भ को प्रति वर्ष होने वाले कुम्भ के नाम से भी जाना जाता है, कुछ वर्ष पहले यह एक मेले का स्वरुप था यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है
राजिम तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यह मुख्य रूप से तीन नदिया बहती है, जिनके नाम क्रमश महानदी, पैरी नदी तथा सोढुर नदी है, राजिम तीन नदियों का संगम स्थल है, संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है, राजिम कुम्भ यहाँ होने वाले राजिम मेले का वर्तमान स्वरुप है, २००१ से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, २००५ से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता है, प्रतिवर्ष राजिम कुम्भ का आयोजन छत्तीसगढ़ शासन संस्कृति विभाग, एवम स्थानीय आयोजन समिति के सहयोग से होता है,कुम्भ की शुरुआत कल्पवाश से होती है पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते है पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है, १०१ कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से कुम्भ का आगाज होता है, राजिम कुम्भ में विभिन्न जगहों से हजारो साधू संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो के संख्या में नागा साधू, संत आदि आते है, तथा शाही स्नान तथा संत समागम में भाग लेते है, प्रतिवर्ष होने वाले इस महाकुम्भ में विभिन्न राज्यों से लाखो की संख्या में लोग आते है,और भगवान श्री राजीव लोचन, तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते है, और अपना जीवन धन्य मानते है, लोगो में मान्यता है की भनवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम कुम्भ का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है।
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