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मेरांमेरा नाम नेहल जैन है । मेरा जन्म ०१ मार्च १९९८ को हुआ । मैं एक संयुक्त् परिवार से हूं । मेरी माँ का नाम नीलम जैन और पिता क नाम अभीषेक जैन है । इसके अलावा मेरे दो भाई भी है । बचपन से ही मेरे लिये परिवार का महत्व बहुत ही अधिक रहा है । मेरी माँ सदैव ही सीक्षा
को सबसे ज़्यादा ज़रुरी बताती है । मेरी सीक्षा बारहवीं तक कलकत्ता शहर में हुई । फिर क्राइस्ट यूनीवरसीटी बेनगलूरू में बी एस ई की दिग्री के लिये अपनी सीक्षा ग्रहण कर रही हू । यह सोच की लड़कियाँ स्वतन्त्र रुप से जीवनयापन नहीं कर सकती आज के जमाने में बहुत हद तक टुट रही है । आड्ंरो का खंडन करते हुए आज मैं घर से बहुत दूर सिर्फ सीक्षा प्राप्त करने और अपने माता-पिता का सिर ऊचा करने आई हूँ । मुझे बचपन से ही मंच से एक प्रकार का डर था, पर ११विं में अपने स्कूल की एडीटर बन्ने के बाद मुझमें एक प्रकार का आत्म्-विशवास पैदा हुआ । अपनी अध्यापिकाओं के प्रोत्साहन के कारण मैं स्कूल में बहुत सी घटनाओ की हिस्सा बन पाई, जैसे २ साल तक अपनी वार्षिक् पुरस्कार वितरण को होस्ट करना , अंतर विद्या लयि अभ्यागमान में अपने स्कूल की प्रतिनिधी बनी , १२वीं क्षात्रा में स्कुल के क्लब 'समरिधी'(पर्यावरण को बचाने के लिये बनी गयी सम्मेलन् )की प्रेसिदेंट बनी । कलत्ता शहर में पली-बढी एक चिज़् जो मुझे बचपन से ही सिखाई गई है - वह है दुसरो की मदद करना । इस शहर में जहाँ एक और् सैक्षिक एव्ं सान्सक्रितीक् परिवरतनों के प्रार्ंभिक केन्द्र बिन्दु के रुप पहचान मिली है ,वहीं दुसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ के रुप में भी मान्यता प्राप्त हैं । अभी चाह बस यह ही है की अपनी दिग्री खतम करके 'लन्ड्न स्कुल आफ इकोनौमिक्स' मे अर्थशास्त्र में मास्टर्स की दिग्री हासील कर सकू और अपने पैरो पर खडी हो पाउ ।
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