"संविधान": अवतरणों में अंतर
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सभी प्रचलित कानूनों को अनिवार्य रूप से संविधान की भावना के अनुरूप होना चाहिए यदि वे इसका उल्लंघन करेंगे तो वे असंवैधानिक घोषित कर दिए जाते है।<br/>
== परिचय ==
'''संविधान'''
'संविधान' शब्द का आशय कोई भी माना जाए किंतु मूल वस्तु यह है कि किसी देश के संविधान का पूर्ण अध्ययन केवल कुछ लिखित नियमों के अवलोकन के संभव नहीं। कारण, यह तो शासन प्रबन्ध सम्बन्धी अनुशासन का एक अंश मात्र होते हैं। संपूर्ण संवैधानिक परिचय शासनप्रबंधीय सब अंगों के अध्ययन से ही संभावित हो सकता है। उदाहरणार्थ, बहुधा संविधान संविदा में केवल शासन के मुख्य अंगों - कार्यपालिका, विधायिनी सभा, न्यायपालिका - का ही उल्लेख होता है। किंतु इन संस्थाओं की रचना, पदाधिकारियों की नियुक्ति की रीति इत्यादि की व्याख्या साधारण विधि द्वारा ही निश्चित होती है। इसी प्रकार कई देशों में निर्वाचन नियम, निर्वाचन क्षेत्र एवं प्रति क्षेत्र के सदस्यों की संख्या, शासकीय विभागों की रचना तथा न्यायपालिका का संगठन, इन सब महत्वपूर्ण कार्यो को संविधान में कहीं व्याख्या नहीं होती; यदि होती भी है तो बहुत साधारण रूप में, मुख्यत: इनका वर्णन तथा नियंत्रण साधारण विधि द्वारा ही होता है। इसके अतिरिक्त संपूर्ण विधिरचना विधानमंडल के क्षेत्र में ही सीमित नही होती, न्यायपालिका द्वारा मूलविधि की व्याख्या द्वारा जो नियम प्रस्फुटित होते हैं उनसे संविधान में नित्य संशोधनत्मक नवीनता आती रहती है। फिर, राज्यप्रबन्ध सम्बन्धी रूढ़ि एवं व्यवहार भी कम प्रभावात्मक और महत्वपूर्ण नहीं होते। अतएव इन सब अंशों का अध्ययन ही सर्वांग वैधानिक परिचय पूर्ण कर सकता है। किंतु 'संवैधानिक शास्त्र' शब्द की परिधि में केवल शुद्ध वैधानिक नियम ही आते हैं, अन्य सब संवैधानिक व्यवहाररूप माने जाते हैं।
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