"सदस्य:Neeraj 933/बंदी छोड़ दिवस": अवतरणों में अंतर

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== ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ==
अपने पिता गुरू अर्जन देव जी की मृत्यू मुगल बादशाह जहांगीर के हाथों से होने के कारण हरगोबिंद जी को सिख समुदाय के सैन्य आयाम पर ज़ोर देने का फैसला बहुत अनिवार्य लगा। उन्होंने प्रतीकात्मक दो तलवारें पहनी थी, जिनका प्रतिनिधित्व मिरी और पिरी (लौकिक शक्ति और आध्यात्मिक अधिकार) था। रमदासपुर (अमृतसर) की रक्षा के लिये उनहोंने एक किला बनवाया और साथ ही साथ एक औपचारिक अदालत भी बनवाया जिसे "अकाल तख्त" कहा गया।
 
गुरु हरगोबिंद जी के इन आक्रामक कदमों ने जहांगीर को उनहें करगार मे बंद करने पर मजबूर कर दिया। यह अब तक स्पष्ट नही है कि उनहोंने कितना समय कारागार में बिताया था। उनकी रिहाई सन् १६११ में या फिर सन् १६१२ में हुई थी जो अब तक स्पष्ट नही है। उस समय तक जहांगीर ने अपने पिता अकबर के सहिष्णु नीतियों को प्रत्यावर्तित कर दिया था और गुरु हरगोबिंद जी को निर्दोष और हानिरहित पाने के बाद, उनकी रिहाई का आदेश दिया गया। सिख परंपरा के अनुसार, ५२ राजाओं जो मुगल साम्राज्य का विरोध करने के लिए बंधकों के रूप में किले में कैद कर लिया गया था वह बहुत निराश थे क्योंकि अब वेह अपने आध्यात्मिक गुरु को खो रहे थे। गुरु हरगोबिंद जी ने राजाओं से अनुरोध किया कि वह भी उनके साथ मुक्त हो जाएँ और उनका निष्ठावान व्यवहार ही उनकी रिहाई का कारण बनेगा। जहांगीर ने आदेश दिया कि केवल उन रजाओं को ज़मानत मिलेगी जो हरगोबिंद जी की बरसती को किले के बाहर निकलते समय पकड सकेंगे। गुरु हरगोबिंद जी ने बडी चालाकी से एक विशेष गाउन बनाया जिसमे ५२ झालर लगे हुए थे। इससे जब गूरु हरगोबिंद जी किले से बाहर निकल रहे थे तब राजाओं ने गाउन में लगे उन ५२ झालरों को पकड कर किले स बाहर निकल गए। इस प्रकार बिना किसी हिंसा के हरगोबिंद जी ने खुद को और उन ५२ राजाओं को कारागार से बाहार निकलवाया।