"जगदीश चन्द्र बसु": अवतरणों में अंतर

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[[ब्रिटिश भारत]] के [[बंगाल]] प्रांत में जन्मे बसु ने [[सेन्ट ज़ैवियर महाविद्यालय]], [[कलकत्ता]] से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। ये फिर [[लंदन विश्वविद्यालय]] में [[चिकित्सा]] की शिक्षा लेने गए, लेकिन स्वास्थ्य की समस्याओं के चलते इन्हें यह शिक्षा बीच में ही छोड़ कर भारत वापिस आना पड़ा। इन्होंने फिर [[प्रेसिडेंसी महाविद्यालय]] में भौतिकी के प्राध्यापक का पद संभाला और जातिगत भेदभाव का सामना करते हुए भी बहुत से महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग किये। इन्होंने [[बेतार]] के संकेत भेजने में असाधारण प्रगति की और सबसे पहले रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए [[अर्धचालक|अर्धचालकों]] का प्रयोग करना शुरु किया। लेकिन अपनी खोजों से व्यावसायिक लाभ उठाने की जगह इन्होंने इन्हें सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर दिया ताकि अन्य शोधकर्त्ता इनपर आगे काम कर सकें। इसके बाद इन्होंने [[वनस्पति जीवविद्या]] में अनेक खोजें की। इन्होंने एक यन्त्र [[क्रेस्कोग्राफ़]] का आविष्कार किया और इससे विभिन्न उत्तेजकों के प्रति पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया। इस तरह से इन्होंने सिद्ध किया कि वनस्पतियों और पशुओं के [[ऊतक|ऊतकों]] में काफी समानता है। ये पेटेंट प्रक्रिया के बहुत विरुद्ध थे और मित्रों के कहने पर ही इन्होंने एक पेटेंट के लिए आवेदन किया। हाल के वर्षों में आधुनिक विज्ञान को मिले इनके योगदानों को फिर मान्यता दी जा रही है।
 
== प्रारंभिक जीवन weatherएवंएवं शिक्षा ==
बसु का जन्म 30 नवम्बर 1858 को बंगाल (अब बांग्लादेश) में ढाका जिले के फरीदपुर के मेमनसिंह में हुआ था। उनके पिता भगवान चन्द्र बसु ब्रह्म समाज के नेता थे और फरीदपुर, बर्धमान एवं अन्य जगहों पर उप-weatherमैजिस्ट्रेट या सहायक कमिश्नर थे।<ref name=vigyanprasar>{{cite web
| url = http://www.vigyanprasar.gov.in/scientists/JCBOSE.htm| title = Acharya Jagadis Chandra Bose| accessdate = 2007-03-12
| last = Mahanti| first = Subodh| work = Biographies of Scientists| publisher = Vigyan Prasar, Department of Science and Technology, [[Government of India]]}}</ref><ref name="Mukherji3-10">Mukherji, Visvapriya, Jagadish Chandra Bose, second edition, 1994, pp. 3-10, Builders of Modern India series, Publications Division, Ministry of Information and Broadcasting, Government of India, ISBN 81-230-0047-2</ref> इनका परिवार रारीखाल गांव, बिक्रमपुर से आया था, जो आजकल बांग्लादेश के मुन्शीगंज जिले में है।<ref name=bosebpedia>{{cite web