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माच (अंग्रेजी में Mach) [[मालवा]] का प्रमुख लोक नाट्य रूप है। लोक मानस के प्रभावी मंच माच को [[उज्जैन]] में जन्म मिला है। माच शब्द का सम्बन्ध [[संस्कृत]] मूल मंच से है। इस मंच शब्द के [[मालवी]] में अनेक क्षेत्रों में प्रचलित परिवर्तित रूप मिलते हैं। उदाहणार्थ- माचा, मचली, माचली, माच, मचैली, मचान जैसे कई शब्दों का आशय मंच के समानार्थी भाव बोध को ही व्यक्त करता है। माच गुरु सिद्धेश्वर सेन माच की व्युत्पत्ति के पीछे सम्भावना व्यक्त करते हैं कि माच के प्रवर्तक गुरु गोपालजी ने सम्भवतः कृषि की रक्षा के लिए पेड़ पर बने मचान को देखा होगा, जिस पर चढ़कर स्त्री या पुरुष आवाज आदि के माध्यम से नुकसान पहुँचाने वाले पशु-पक्षियों से खेत की रक्षा करते हैं। गुरु गोपालजी ने मचान शब्द को ध्यान में रखा होगा और फिर नाट्य-प्रदर्शन के ऊँचे स्थान (मंच) से उसी मचान की आकृति एवं रूप साम्य के आधार पर अपने मंच का नाम माच दे दिया होगा। कालान्तर में यही नाम प्रचलित हो गया। वस्तुतः माच के मंच और मचान में पर्याप्त साम्य रहा है। पुराने दौर में माच का मंच इतना अधिक ऊँचा बनाया जाता था कि उसके नीचे से बैलगाड़ी भी गुजर जाती थी। इन दिनों मंच की ऊँचाई प्रायः सामान्य ही रहती है।<ref name=":0" />
 
[[भारत]] के विभिन्न अंचलों में बोली जाने वाली लोक-भाषाएँ राष्ट्रभाषा [[हिंदी]] की समृद्धि का प्रमाण हैं। लोक-भाषाएँ और उनका साहित्य वस्तुतः [[भारतीय संस्कृति]] एवं राष्ट्रवाणी के लिए अक्षय स्रोत हैं। हम इनका जितना मंथन करें, उतने ही अमूल्य रत्न हमें मिलते रहेंगे। कथित आधुनिकता के दौर में हम अपनी बोली-बानी, साहित्य-संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं। ऐसे समय में जितना विस्थापन लोगों और समुदायों का हो रहा है, उससे कम लोक-भाषा और लोक-साहित्य का नहीं हो रहा है। घर-आँगन की बोलियाँ अपने ही परिवेश में पराई होने का दर्द झेल रही हैं। इस दिशा में लोकभाषा, साहित्य और संस्कृतिप्रेमियों के समग्र प्रयासों की दरकार है। प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के अनुसार भारत के हृदय अंचल मालवा ने तो एक तरह से समूची भारतीय संस्कृति को गागर में सागर की तरह समाया हुआ है। मालवा की परम्पराएँ समूचे भारत से प्रभावित हुई हैं और पूरे भारत को मालवा की संस्कृति ने किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है। [[मालवा]] भारत का हृदय अंचल है तो इसकी सांस्कृतिक राजधानी है [[उज्जैन]]। उज्जैन कला के अधिष्ठाता [[शिव]] और सर्व-कला-रत्न [[श्रीकृष्ण]] की नगरी है। इसी नगरी को लोक नाट्य माच के जन्म का श्रेय जाता है। आज का मालवा सम्पूर्ण पश्चिमी [[मध्यप्रदेश]] और उसके साथ सीमावर्ती पूर्वी [[राजस्थान]] के कुछ जिलों तक विस्तार लिए हुए है, जहाँ [[मालवी]] और उसकी उपबोलियों का प्रयोग होता है।<ref>{{cite book|first1=शैलेंद्रकुमार|last1=शर्मा|title=मालवा का लोक नाट्य माच और अन्य विधाएँ|date=2008|publisher=अंकुर मंच|location=उज्जैन|pages=6-18}}</ref> इसकी सीमा रेखा के संबंध में एक पारम्परिक दोहा प्रचलित है जिसके अनुसार [[चम्बल]], [[बेतवा]] और [[नर्मदा]] नदियों से घिरे भू-भाग को मालवा की सीमा मानना चाहिए-
"https://hi.wikipedia.org/wiki/माच" से प्राप्त