"वन्दे मातरम्": अवतरणों में अंतर

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== राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृति ==
स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब [[राष्ट्रगान]] के चयन की बात आयी तो [[वन्दे मातरम्]] के स्थान पर [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] द्वारा लिखे व गाये गयेjगये गीत [[जन गण मन]] को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को "वन्दे मातरम्" गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गीत में देवी [[दुर्गा]] को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस [[आनन्द मठ]] उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् [[१९३७]] में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। [[जवाहरलाल नेहरू]] की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें [[मौलाना अबुल कलाम आजाद]] भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के '''जन-गण-मन अधिनायक जय हे''' को यथावत [[राष्ट्रगान]] ही रहने दिया गया और [[मोहम्मद इकबाल]] के कौमी तराने [[सारे जहाँ से अच्छा]] के साथ बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत '''वन्दे मातरम्''' [[राष्ट्रगीत]] स्वीकृत हुआ।
 
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद [[डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद]] ने संविधान सभा में २४ जनवरी १९५० में 'वन्दे मातरम्' को [[राष्ट्रगीत]] के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया।