"गोविन्द शंकर कुरुप": अवतरणों में अंतर
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. इनकी काव्य चेतना ने ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक युग बोध के प्रति सजग भाव रखा है। कुरुप बिम्बों और प्रतीकों के कवि हैं। इन्होंने परम्परागत छन्द विधान और संस्कृत निष्ठ भाषा को अपनाया परिमार्जित किया और अपने चिन्तन तथा काव्य प्रतिबिम्बों के अनुरुप उन्हें अभिव्यक्ति की नयी सामर्थ्य से पुष्ट किया।
==जीवन परिचय==
नायतोट्ट के सरलजीवी वातावरण में गोविन्द शंकर कुरुप का जन्म शंकर वारियर के घर में हुआ। उनकी माता का नाम लक्ष्मीकुट्टी अम्मा था। बचपन में ही पिता का देहांत हो जाने के कारण उनका लालन-पालन मामा ने किया। उनके मामा ज्योतिषी और पंडित थे जिसके कारण संस्कृत पढ़ने में उनकी सहज रुचि रही और उन्हें संस्कृत काव्य परंपरा के सुदृढ़ संस्कार मिले। आगे की पढ़ाई के लिए वे [[पेरुमपावूर]] के मिडिल स्कूल में पढ़ने गए। सातवी कक्षा के बाद वे मूवाट्टुपुपा मलयालम हाई स्कूल में पढ़ने आए। यहाँ के दो अध्यापकों श्री आर.सी.शर्मा और श्री एस.एन. नायर का उनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने कोचीन राज्य की पंडित परीक्षा पास की, बांग्ला और मलयालम के साहित्य का अध्ययन किया। उनकी पहली कविता आत्मपोषिणी नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई और जल्दी ही उनका पहला कविता संग्रह साहित्य कौतुमकम प्रकाशित हुआ। इस समय वे तिरुविल्वामला हाई स्कूल में अध्यापक हो गए। १९२१ से १९२५ तक श्री शंकर कुरुप तिरुविल्वामला रहे। १९२५ में वे चालाकुटि हाई स्कूल आ गए। इसी वर्ष साहित्य कौतुकम का दूसरा भाग प्रकाशित हुआ। उनकी प्रतिभा और प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी थी। १९३१ में नाले (आगामी कल) शीर्षक कविता से वे जन जन में पहचाने गए। १९३७ से १९५६ तक वे महाराजा कॉलेज एर्णाकुलम् में प्राध्यापक के पद पर कार्य करते रहे। प्राध्यापकी से अवकाश लेने के बाद वे आकाशवाणी के सलाहकार बने। १९६५ में ज्ञानपीठ के बाद उन्हें १९६७ में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुआ। ''' गोविंद शंकर कुरुप ''' को [[ साहित्य एवं शिक्षा ]] के क्षेत्र में सन [[१९६८]] में
==प्रकाशित कृतियाँ==
*'''कविता संग्रह''' - साहित्य कौतुकम् - चार खंड (१९२३-१९२९), सूर्यकांति (१९३२), नवातिथि (१९३५), पूजा पुष्पमा (१९४४), निमिषम्(१९४५), चेंकतिरुकल् मुत्तुकल्(१९४५), वनगायकन् (१९४७), इतलुकल् (१९४८), [[ओटक्कुष़ल्]](१९५०), पथिकंटे पाट्टु(१९५१), अंतर्दाह (१९५५),वेल्लिल्प्परवकल् (१९५५), विश्वदर्शनम् (१९६०), जीवन संगीतम् (१९६४), मून्नरुवियुम् ओरु पुष़युम् (१९६४), पाथेयम् (१९६१), जीयुहे तेरंजेटुत्त कवितकल् (१९७२), मधुरम् सौम्यम् दीप्तम्, वेलिच्चत्तिंटे दूतम्, सान्ध्यरागम्।
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==संदर्भ==
<references/>
{{१९६८ पद्म भूषण}}
[[श्रेणी:१९६८ पद्म भूषण]]
[[श्रेणी:मलयालम साहित्यकार]]
[[श्रेणी:ज्ञानपीठ सम्मानित]]
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