"परमानंद दास": अवतरणों में अंतर

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सुधार और सफाई
पंक्ति 11:
:श्री जमुना जल नित प्रति न्हाऊं, मन वच कर्म कृष्ण रस गुन गाऊं ॥२॥
:श्री भागवत श्रवन सुनो नित, इन तजि हित कहूं अनत ना लाऊं।
:‘परमानंद दास’ यह मांगत, नित निरखों कबहूं न अघाऊं ॥३॥
 
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पंक्ति 20:
:एसो स्वाद हम कबहू न देख्यो सुन गोकुल के नाथ ॥
:आन पत्र लगाए दोना, दीये सबहिन बाँट।
:जिन नहीनहीं पायो सुन रे भैया, मेरी हथेली चाट ॥
:आपुन हँसत हँसावत औरन, मानो लीला रूप।
:परमानंद प्रभु इन जानत हों, तुम त्रिभुवन के भूप॥
पंक्ति 39:
[[श्रेणी:हिन्दी साहित्य]]
[[श्रेणी:फ़र्रूख़ाबाद के हिन्दी कवि]]
[[श्रेणी: हिन्दी साहित्यकार]]
[[श्रेणी:हिन्दी कवि]]
[[श्रेणी:भक्तिकाल]]