"अरुणा आसफ़ अली": अवतरणों में अंतर

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अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।[1]
 
अरुणा जी ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ.डॉ॰ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मुम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, पर पुलिस की पकड़ से बचकर लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।
 
कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष