"चीन की साम्यवादी क्रांति": अवतरणों में अंतर

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19वीं सदी के मध्य तक [[चीन]] अपने गौरवपूर्ण इतिहास से लगभग अनभिज्ञ, ध्वस्त, पस्त एक एशियाई देश बचा रह गया था। भले ही वह औपचारिक रूप से किसी विदेशी ताकत का उपनिवेश नहीं था परन्तु उसकी हालत किसी दूसरे गुलाम देश से बेहतर नही थी। इतिहासकार चीन में यूरोपीय शक्तियों के संघर्ष को “खरबूजे का बटवारा” कहते थे, ऐसा फल जिसे अपनी इच्छानुसार शक्तिसंपन्न व्यक्ति फांक-फांक काटकर आपस में बांटते, खाते पचाते रहते हैं। चीन के प्रमुख शहरों में ऐसे अनेक इलाके थे जिन पर यूरोपीय ताकतों का कब्जा था और जहाँ चीनी शासक का राज नहीं चलता था। तटवर्ती बंदरगाह भी यूरोपियों के सैनिक नियंत्रण में थे। ब्रिटेन की नौसैनिक शक्ति का मुकाबला करने की क्षमता चीन में नहीं थी इसलिए चीन के व्यापार पर उन्हीं का नियंत्रण था। [[ब्रिटेन]] ने अपने स्वार्थों की रक्षा के लिए चीन में [[अफीम]] के सेवन को बढ़ावा दिया था और इस नशे में गालिफ चीनियों का भरपूर उत्पीड़न किया था। अतः यह स्वाभाविक था कि राष्ट्रपे्रमी चीनियाें के मन में इन उत्पीड़क परिस्थितियों के प्रति आक्रोश पनप रहा था।
 
चीन की पहली क्रांति का स्वरूप मुख्यतः सांस्कृतिक था और इसका सूत्रपात डॉ.डॉ॰ [[सनयात सेन]] ने किया था। उन्हीं के प्रयत्नों से राष्ट्रवादी चीनी पार्टी की स्थापना हुई जिसे ''''कुओमितंग'''' के नाम से जाना जाता है।
 
1911 में जिस [[मांचू राजवंश]] का अंत कर गणतंत्र की स्थापना की गई उसका अस्थायी राष्ट्रपति [[युवान शिह काई]] था। किन्तु उसने प्रतिक्रियावादी एवं दमनात्मक कदम उठाते हुए कुओमितांग दल पर प्रतिबंध लगा दिया और सनयात सेन को [[जापान]] भागना पड़ा। 1916 में [[युवान शिह]] काई की भी मृत्यु हो गई और उसकी मृत्यु के पश्चात प्रांतीय गवर्नर व सेनापतियों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया, पूरा चीन अनेक युद्ध सरदारों (टूचेन) के नियंत्रण में बंट गया। 1917 ई. में कुओमितांग दल ने अराजकता के माहौल में गणतांत्रिक सरकार की स्थापना का प्रयास किया। इसी समय [[रूस]] में हुई [[रूसी क्रांति|साम्यवादी क्रांति]] से प्रभावित होकर 1923 में सनयात सेन ने रूसी साम्यवादी सरकार से सहयोगात्मक संधि कर गणतांत्रिक सरकार बनाने का प्रयास किया किन्तु 1925 में उनकी मृत्यु के कारण यह पूरा नही हो पाया। आगे उनके उत्तराधिकारी [[च्यांग काई शेक]] को चीन के साम्यवादी दल के साथ गृह युद्ध में फंसना पड़ा। अंततः [[माओत्से तुंग]] के नेतृत्व में साम्यवादी दल ने 1 अक्टूबर, 1949 को चीनी लोक गणराज्य (पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) की स्थापना की।
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1917 में हुई रूस की [[रूसी क्रांति|बोल्शेविक क्रांति]] के प्रभाव से चीनी भी अछूता न रहा। 1919 में पेकिंग के अध्यापकों व छात्रों ने [[साम्यवाद]], [[मार्क्सवाद]] के अध्ययन के लिए एक संस्था की स्थापना की। इन्हीं व्यक्तियों में माओत्से तुंग भी शामिल था जो आगे चलकर चीनी साम्यवादी दल का नेता बना। 1919 में इन्हीं लोगों के प्रयास से चीनी साम्यवादी दल (कुंगचांगतांग) की स्थापना हुई। शीघ्र ही [[कैंटन]], [[शंघाई]] और [[हूनान]] प्रांतों में भी कम्यूनिस्ट पार्टी की शाखाएँ कायम हो गई और 1921 में शंघाई में इन सब शाखाओं का प्रथम सम्मेलन हुआ जिसमें विदेशी आधिपत्य से चीन को मुक्ति दिलाना लक्ष्य घोषित किया गया।
 
इस साम्यवादी विचारधारा ने चीन के उदार राष्ट्रवादियों को भी प्रभावित किया जिनमें [[सनयात सेन]] भी शामिल थे। वस्तुतः डॉ.डॉ॰ सनयात सेन चीन को संगठित करने के लिए विदेशी सहायता प्राप्त करना चाहता था लेकिन पश्चिम के साम्राज्यवादी राज्यों ने उनकी कोई मदद नहीं की अंततः वह [[सोवियत संघ]] की ओर आकृष्ट हुआ। रूस ने साम्यवादी प्रसार के लोभ में चीन के प्रति सहानुभूति जताई और उसे हर तरह की सहायता देने का आश्वासन दिया। इसी संदर्भ में 1921 ई. में कॉमिन्टर्न के प्रतिनिधि मेरिंग ने सनयात सेन से मुलाकात कर आपसी सहयोग की चर्चा की।
 
डॉ.डॉ॰ सनयात सेन के सूझबूझ एवं संगठनात्मक क्षमता की वजह से कुओमितांग तथा चीनी साम्यवादी दल में सहयोगपूर्ण संबंध बने। रूसी साम्यवादी विचारकों ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को कुओमितांग दल के साथ मिलजुल कर कार्य करने को कहा। दोनों मिलकर वहाँ [[साम्राज्यवाद]] के विरूद्ध कार्य करने लगे। सनयात सेन के जीवित रहने तक यह सहयोग बना रहा और दोनों दल मिलजुल कर कार्य करते रहे। किन्तु '''12 मार्च, 1925 को सनयात सेन की मृत्यु हो गई'''। तत्पश्चात् चीनी साम्यवादी दल तथा कुओमितांग के बीच मतभेद उत्पन्न होने लगे। वस्तुतः चीनी साम्यवादी अपने संगठन को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने किसानों और मजदूरों को अपने पक्ष में संगठित किया और राष्ट्रीय स्तर पर एक मजदूर संघ की स्थापना की। फलतः मजदूरों की हड़तालों तथा मांगों की बारंबारता में वृद्धि हुई। इसी तरह किसानों के संघ बने जिन्होंने लगान में कमी तथा जमींदारी उन्मूलन की मांग की। सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात 1925 में माओत्से तुंग ने [[हूनान प्रांत]] में एक उग्र किसान आंदोलन चलाया। इस आंदोलन ने न सिर्फ जमींदारों को उखाड़ फेंका बल्कि सम्पत्ति पर कब्जा कर समाज के ढांचे को बदला।
 
सनयात सेन की मृत्यु के बाद कुओमितांग दल का प्रधान [[च्यांग काई शेक]] बना। उसकी सद्भावना व्यावसासियों व जमींदारों के साथ थी। उसने साम्यवादियों को कुओमितांग दल से निष्कासित कर दिया। च्यांग का मानना था कि कम्युनिस्ट शक्तिशाली होते जा रहे हैं जो जमींदारों पर आक्रमण कर उनकी सम्पत्ति पर कब्जा कर रहे हैं। अतः इन्हें समाप्त करना आवश्यक है। च्यांग काई शेक ने कम्युनिस्टों को पार्टी से निकाल कर शुद्धीकरण आंदोलन चलाया जिसमें हजारों कम्युनिस्ट, ट्रेड यूनियनिस्ट तथा किसान नेता मारे गए। इस तरह च्यांग काई शेक ने नानकिंग में अपनी सत्ता को मजबूती से स्थापित किया।