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इन सबसे यह निष्कर्ष निकलता है कि जातक कथाओं की आधार गाथाएँ ही है। स्वयं अनेक जातक कथाओं के वेय्याकरण भाग में पालि और अट्ठकथा के बीच भेद दिखाया गया है, जैसे कि पलि सुत्तों की अन्य अनेक अट्ठकथाओं तथा विसुद्धिमग्गों आदि ग्रन्थों में भी। जहाँ तक जातक के वेय्याकरण भाग से सम्बन्ध है, वहाँ पालि का अर्थ तिपिटक गत गाथा ही हो सकता है। भाषा के साक्ष्य से भी गाथा भाग अधिक प्राचीनता का द्योतक है अपेक्षाकृत गद्य भाग के। पिण्टरनित्ज ने कहा है जातक की सम्पूर्ण गाथाओं को तिपिटक का मूल अंश नहीं माना जा सकता है। उनमें भी पूर्वापर भेद है। स्वयं जातक के वर्गीकरण से ही यह स्पष्ट है। चौदहवें निपात (पकिण्णक निपात) में प्रत्येक जातक कथा की गाथाओं की संख्या नियमानुसार 14 न होकर कही-कहीं बहुत अधिक है। इसी प्रकार बीसवें निपात (सत्तति निपात) में उसकी दो जातक कथाओं की संख्या सत्तर-सत्तर न होकर क्रमशः 92 और 93 है। इस सबसे यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जातक का गाथाओं अथवा गाथा जातक की मूल संख्या निपात के शीर्षक की संख्या के अनुकूल ही होगी। और बाद में उसका संवर्द्धन किया गया है। अतः कुछ गाथा एँ अधिक प्राचीन है और कुछ अपेक्षाकृत कम प्राचीन है। इसी प्रकार गद्य भाग भी कुछ अत्यन्त प्राचीनता के लक्षण लिए हुए है और कुछ अपेक्षाकृत अर्वाचीन है। किसी-किसी जातक में गद्य और गाथा भाग में साम्य भी नहीं दिखाई पड़ता और कही-कहीं शैली में भी बड़ी विभिन्नता है। इस सबसे जातक के संकलनात्मक रूप और उसके भाषारूप की विविधता पर प्रकाश पड़ता है जिसमें कई रचयिताओं या संकलनकर्ताओं और कई शताब्दियों का योग रहा है।
 
जातक की गाथाओं की प्राचीनता तो निर्विवाद है ही, उसका अधिकांश गद्य भाग भी अत्यन्त प्राचीन है। [[भरहुत]] और [[साँची]] के स्तूपों की पाषाण वेष्टनियों पर जो चित्र अंकित है वे जातक के गद्य भाग से ही सम्बन्धित हैं। अतः जातक का अधिकांश गद्य-भाग जो प्राचीन है, तृतीय, द्वितीय शताब्दी ईसवी पूर्व में इतना लोकप्रिय तो होना हीं चाहिए कि उसे शिल्प कला का आधार बनाया जा सके। अतः सामान्यतः हम जातक को बुद्धकालीन भारतीय समाज और संस्कृति का प्रतीक मान सकते हैं। उसमें कुछ लक्षण और अवस्थाओं के चित्रण प्राग-बुद्धकालीन भारत के भी हैं और कुछ बुद्ध के काल के बाद के भी है। जहाँ तक गाथाओं की व्याख्या और उनके शब्दार्थ का सम्ब न्ध है, वह सम्भवतः जातक का सब से अधिक अर्वाचीन अंश है। इस अंश के लेखक आचार्य बुद्ध घोष माने जाते है। ‘गन्धवंस’ के अनुसार आचार्य [[बुद्धघोष]] ने ही ‘जातकट्ठण्णना’ की रचना की, किन्तु यह सन्दिग्ध है। भाषाशैली की भिन्नता दिखाते हुए और कुछ अन्य निषेधात्मक कारण देते हुए डॉ.डॉ॰ टी. डब्ल्यू रायस डेविड्स ने बुद्धघोष को जातकट्ठवण्णना का रचयिता या संकलनकर्ता नहीं माना है। स्वयं जातकट्ठकथा के उपोद्घात में लेखक ने अपना परिचय देते हुए कहा है ‘‘ ....शान्तचित्त पण्डित बुद्धमित्त भिक्षु बुद्धदेव के कहने से ........ व्याख्या करूँगा। महिशासक सम्प्रदाय महाविहार की परम्परा से भिन्न एक बौद्ध सम्प्रदाय था। बुद्धघोष ने जितनी अट्ठकथाएँ लिखी है, शुद्ध महाविहारवासी भिक्षुओं की उपदेश विधि पर आधारित हैं। अतः जातकट्ठकथा के लेखक को आचार्य [[बुद्धघोष]] से मिलाना ठीक नहीं। सम्भवतः यह कोई अन्य सिंहली भिक्षु थे, जिनका काल पाँचवीं शताब्दी ईसवी माना जा सकता है।
 
==जातकों की सूची==